SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सद्धमं ( जैनधर्म ) रूपी अलकी वृष्टिो जान दीगोंको हर्षित करने वाले, अतएव मेघके समान, स्थिरतामें मेरु पर्वतके समान, अगाषतामें समुद्रके समान, संसारके सारका ऊहापोह करके पार जाने में समर्थ, दुर्दमनीय कामदेव रूपी मेघमण्डलके लिए पवनस्वरूप, शुभ्र-दीप्तिके कारण सूर्यके समान, सौम्यताके कारण चन्द्रमाके समान और देवताओंके अधिपति इन्द्र द्वारा पूजित ( वे भगवान ) वीर आप लोगोंका कल्याण करें.॥३॥ ___ मंगलमय श्री मूलसंघमें श्रेष्ठ बलात्कारगणमें और कुन्दकुन्दकी शिष्य परम्परामें विद्यानन्दीके श्रेष्ठ बन्धु, शुभ गुणोंसे युक्त मल्लिभूषण मुनीन्द्रकी, लक्ष्मीचन्द्र यतीन्द्रकी, देवताओंसे वन्दित वीरचन्द्रकी और ज्ञान आदि गुणोंसे भूषित, सुमति तथा सुख देनेवाले श्रीप्रभाचन्द्रदेवकी मैं स्तुति करता हूँ ॥४॥ ___ स्वस्ति श्रीवीरमहावीरातिबीरसन्मतिवर्द्धमानतीर्थकरपरमदेववदनारविन्दविनिर्गतदिव्यध्वनिप्रकाशनप्रवीणश्रीगोतमस्वामीगणधरान्वयश्रुतकेवलिश्रीमद्भद्रबाहुयोगीन्द्राणां श्रीमूलसंघसंजनितनन्दिसंघप्रकाशबलात्कारगणाग्रणीपूर्वापरांशवेदिश्रीमाघनन्दिभद्दारकाणां तत्पट्टकुमुदचनविकाशनचन्द्रायमानसकलसिद्धान्तादिश्रुतमागरपारंगतश्रीजिनचन्द्रमुनीन्द्राणाम् ॥१॥ तत्पट्टोदयाद्रिदिवाकरश्रीएलाचार्यगृध्रपिच्छवक्रीवपयनन्दिकुन्दकुन्दाचार्ययाणाम् ॥२॥ दशाध्यायसमाक्षिप्तजैनागमतत्त्वार्थसूत्रसमूह-श्रीमदुमास्वातिदेवानाम् ॥३॥ सम्यकदर्शतज्ञानचारित्रतपश्चरणविचारचातुरीचमत्कारचमत्कृतचतुरवरनिकरचतुरशीतिसहस्रप्रमितिबृहदाराधनासारकत श्रीलोहाचार्याणाम् ॥४॥ अष्टादशवर्णविरचितप्रबोधसारादिग्रन्थश्रीयश:कीर्तिमुनीन्द्राणाम् ॥५॥ कुन्देन्दुहारतुषारकाशसंकाशयशोभरभूषितश्रीयशोनन्दीश्वराणाम् || मंगलमय श्रीवीर, महावीर, अतिवीर, सन्मति, वर्द्धमान, तीर्थकर परमदेवके मुखारविन्दसे निकली हुई दिव्य वाणीको प्रकाशित करने में निपुण श्री गौतमस्वामो गणधरके शिष्य श्रुतकेवलो श्री भद्रवाह योगीन्द्रके श्रीमूलसघसे उत्पन्न नन्दिसंघका प्रकाशस्वरूप बलात्कारगणमें अग्रेसर तथा पूर्व एवं अपर अंशको जाननेवाले श्रीमाधनन्दी भट टारकके और उनके पट टरूपी कुमुदवनको विकसित करनेवाले चन्द्रस्वरूप सम्पूर्ण सिद्धान्त आदि आगमरूपी समुद्रके पारंगत श्री जिनचन्द्र मुनीन्द्र के ॥१॥ उनके पद टरूपी उदयाचलपर उदित सूर्यके समान श्री एलाचार्य, गृध्रपिच्छ, वक्रग्रीव, पद्मनन्दी और कुन्दकुन्दाचार्यवरोंके ॥२॥ पट्टावली ४३१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy