SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५. मनमें ऐसा सोचकर श्रुत-वृत्तशाली अपने गणावर्ती पुत्रको बुलाकर कहा कि : ४६. हमारी वंश-परम्परासे ये गण चले आते हैं, इसलिए तुम भी इनको रक्षा करो, ऐसा कहकर गणीने अपने गणको उनके सुपुर्द किया। ४७. असह्य बिरहजन्य दुःखसे ये बहुत दुःखी हुए, किन्तु इनके गुरुने कोमल वचनोंसे इनको प्रसन्न किया | ४८. अच्छे-अच्छे सुकृत्त कार्यको करनेवाले, कुमति तथा दोषको समूल नष्ट करनेवाले और कामदेवकी सवानियाको जीतने वाले ये मानधामको गये। ४९-५०. उनके स्वर्गधाम चले जानेपर सूरिपदको धारण करनेवाले ये अपने संघकी शनैः शनैः वृद्धि करने लगे। किन्तु गुणोंको, शास्त्रोंको तथा उनके अनिन्द्य चरित्रोंको बार-बार स्मरण कर सदा अपने गुरु के चरणकमलकी ही चिन्ता करते थे। __५१. कृत्यको करके, अपने संघकी रक्षा करके तथा अपने अनिन्दित धर्मको उत्तरोत्तर बढ़ाते हुए इन्होंने अपने गुरुके उपदेशको सफल किया। ५२. इन्हीं मुनिने अपनी विमल वाधारासे उद्धत वादियोंको शमन करते हुए संसारमें अपने धर्माका प्रचार किया। ५३. हे कामिनी ! तु कौन है ? क्या श्रु तमुनिकी कीर्त तू इधर आ रही है ? क्या इन्द्र है, नहीं, यह तो गोत्रभिद् है। कुवेर तो नहीं है ? किन्तु यह किन्नर नहीं मालूम पड़ता है। ब्रह्मन् ! मैं अपने ऐसे किसी विद्वान् मुनिको चारों तरफ खोज रहा हूँ। ५४. सरस्वती देवीके हृदयको रञ्जित करनेवाली, मन्दार तथा मकरन्दके रसके सदृश और सभी संसारको आनन्दित करनेवाली कवोश्वरोंकी सुमधुर वाणी सबके कानोंमें अमृतधाराको भरती है। ५५. समन्तभद्र होते हुए भी असमन्तभद्र, श्रीपूज्यपाद होते हुए भी अपूज्यपाद और मयूरपिच्छ धारण करते हुए भी मयूपिच्छको नहीं धारण करनेवाले हुए। आश्चर्य है कि इनमें विरुद्ध अविरुद्ध दोनों प्रवृत्तियाँ थीं। ५६. इस प्रकार जिनेन्द्रद्वारा कहे गये धर्मकी बड़ी वृद्धि हुई, किन्तु पीछेसे गुप्त रीतिसे कलिकालसे प्रयुक्त जो रोग (पंचम कालका प्रभाव) है वह धम्म में बाधा पहुंचाने लगा। ५७. जैसे दुष्ट सज्जनको अपनी सेवासे मुग्धकर पीछे सर्वपास करनेको ४२२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy