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________________ यश व्याप्त हो चुका था और वे गोम्मटेशमूर्तिके प्रतिष्ठापक के रूप में मान्य हो चुके थे । अतएव संक्षेप में चामुण्डरायका समय ई० सन् की दशम शताब्दी है । रचना चामुण्डराय संस्कृत और कन्नड़ दोनों ही भाषाओं में कविता लिखते थे । इनके द्वारा रचित चामुण्डरायपुराण और चारित्रसार ये दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं । चामुण्डरायपुराणका अपर नाम त्रिषष्ठिपुराण है। यह ग्रन्थ कन्नड़गद्यका सबसे प्रथम ग्रन्थ है । यद्यपि कविपरम्परासे आगत लेखकके प्रसाद और माधुर्यकी झलक इस ग्रन्थ में पर्याप्त है तो भी स्पष्ट है कि यह कृति सर्वसाधारण के उपदेशके लिए लिखी गई है यद्यपि इसमें पम्पका उपयुक्त शब्द- अर्थ - चयन, रण्णका लालित्य तथा वाणका शब्द अर्थ - माधुर्य नहीं है, तो भी इसका अपना सौष्ठव निराला है । इसमें जातक कथाकी-सी झलक मिलती है । यों तो इस ग्रन्थमें ६३ शलाकापुरुषोंकी कथा निबद्ध की गई है; पर साथ में आचार और दर्शनके सिद्धान्त भी वर्णित है । । चारित्रसार आचारशास्त्रका संक्षेपमें स्पष्टरूपसे वर्णन इस ग्रन्थ में गद्यरूपमें प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रंथका प्रकाशन माणिकचन्द्रग्रंथमाला के नवम ग्रन्थके रूपमें हुआ है। आरम्भमें सम्यक्त्व और पंचाणुव्रतोंका वर्णन है । संकल्पपूर्वक नियम करनेको व्रत कहते हैं। इसमें सभी प्रकारके सावधोंका त्याग किया जाता है । व्रतीको निःशल्य कहा है। लिखा है 'अभिसंधिकृतो नियमो व्रतमित्युच्यते, सर्वसा वद्यनिवृत्त्यसंभवादणुव्रतं द्वीद्रियादीनां जंगमप्राणिनां प्रमत्तयोगेन प्राणव्यपरोपणान्मनोवाक्कायैश्च निवृतः । अगारीत्याद्यणुव्रतम् ' व्रतोंके अतिचार, रात्रिभोजनत्याग व्रतका कथन भी अणुव्रतकथनप्रसंग में वाया है । द्वितीय प्रकरणमें सप्तशीलोंका कथन आया है । साथ ही उनके अतिचार भी वर्णित हैं। अनर्थदण्डव्रतका कथन करते हुए अपव्यान, पापोपदेश, प्रमादाचरित, हिंसाप्रदान और अशुभश्रुति ये पाँच उसके भेद कहें हैं। जय, पराजय, बन्घ, बध, अगच्छेद, सर्वस्वहरण आदि किस प्रकार हो सके, इसका मनसे चिन्तन करना अपध्यान है | पापोपदेशके क्लेशवाणिज्य, तिर्यगवाणिज्य, बधकोपदेश और आरम्भकोपदेश भेद हैं । क्लेशवाणिज्यका कथन करते हुए लिखा है कि दासीदास आदि जिस देशमें सुलभ हों उनको बहाँसे लाकर अर्थलाभ के हेतु बेंचना क्लेशवाणिज्य है । गाय-भैंस आदि पशुओंको अन्यत्र ले जाकर बेचना तिरंग् २८ : तीर्थंकर महावोर और उसकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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