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________________ कालदण्ड होने पर भी कलाकार एवं कलाप्रिय है । बाहुलचरितमें इनकी माताका नाम कालिकादेवी बतलाया गया है। इनके पिता तथा पूर्वज गंगवंशके श्रद्धाभाजन राज्याधिकारी रहे होंगे । वे महाराज मारसिंह तथा राजमल्ल द्वितीयके प्रधानमंत्री थे। इनका वंश ब्रह्मक्षत्रियवंश बताया गया है।' चामुण्डरायपुराणसे यह भी अवगत होता है कि इनके गुरुका नाम अजित्तसेन था । अभिलेखोंसे यह भी निर्विवाद ज्ञात होता है कि चामुण्डराय जन्मना जैन थे। नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीने अपने गोम्मटसारमें 'सो अजियसेणणाही जस्स गुरु'२ कहकर अजितसेनको उनका दीक्षागुरु बताया है। मंत्रीवर चामुण्डरायने आचार्य नेमिचन्द्रसिद्धान्त चक्रवतीसे भी शिक्षा प्राप्त की थी। चामुण्डराय अपनी मातृभाषा कन्नड़के साथ संस्कृतमें भी पारंगत विद्वान् थे। वे इन दोनों भाषाओं में साधिकार कविता एवं लेखनकार्य करते थे। उनको उपाधियोंके सम्बन्धमें कहा गया है कि खेडगमुद्धमें बज्ज्वलदेवको हरानेसे उन्हें 'समरधुरन्वर'की उपाधि; मोलम्बयुद्धमें गोलूरके मैदान में उन्होंने जो वीरता दिखलाई उसके उपलक्ष्यमें उन्हें 'वीरमातण्डको उपाधि', उक्कंगोके किले में राजादित्यसे वीरतापूर्वक लड़नेके उपलक्ष्य में 'रणरंगसिंह की उपाधि; बागेयरके किलेमें त्रिभुवनवीरको मारने और गोविन्दारको उसमें न घुसने देनेके उपलक्ष्य में वैरिकुलकालदण्ड'; राजाकामके किले में राजवास सिवर, ऋड़ामिक आदि योद्धाओंको हरानेके कारण उन्हें 'भुजविक्रम'को उपाधि; अपने छोटे भाई नागवर्माके घातक मदुराचयको मार डालनेके उपलक्ष्यमें 'समरपरशुराम'को उपाधि एवं एक कबीलेके मुखियाको पराजित करने के उपलक्ष्यमें 'प्रतिपक्षराक्षस'की उपाधि प्राप्त हुई थी। नैतिक दृष्टिसे 'सम्यक्त्वरत्नाकर', 'शौचाभरण', 'सत्ययुधिष्ठिर' ओर 'सुभटचूड़ामणि' उपाधियाँ प्राप्त थीं। चामुण्डराय गोम्मट, गोम्मटराय, राय और अण्णके नामोसे भी प्रसिद्ध था । संभवत: गोम्मट इनका घरेलू नाम था । इसीसे बाहुबलीको मूत्ति गोम्मटेश्वर कही जाने लगी। विध्यगिरिपर्वतपर इस मूत्तिके अतिरिक्त उन्होंने एक त्यागद ब्रह्मदेवनामक स्तम्भ भी बनवाया था। इस पर चामुण्डरायकी एक प्रशस्ति भी अंकित है। इन्होंने चन्द्रगिरि पर एक मन्दिरका निर्माण कराया, जो चामुण्डरायवसत्तिके नामसे प्रसिद्ध है । चामुण्डरायपुराण एवं अन्य १. "जगत्पवित्रब्रह्मशत्रियवंशभागे", चा० पु०, १०५ । २. गोम्मटसार कर्मकाण, भाषा ९६६ । २६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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