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________________ है । श्रीधरसेनने विश्वलोचन कोषको रचना की है, इसका दूसरा नाम मुक्तावलीकोष है । धनमित्रने एम. शिरचना मिली है. पद नपा कर्मा देवने अनेकार्थनामक एक कोष लिखा है। आशाधरद्वारा विरचित अमरकोषकी क्रिया-कलापटीका भी ज्ञात होती है। इस प्रकार दिगम्बर परम्पराके आचार्योने कोष-साहित्यको अभिवृद्धि की है । पुराण और काव्यविषयक देन दिगम्बराचार्योंने कर्मके फलभोक्ताओंका उदाहरण उपस्थित करनेके लिए काव्य, नाटक, कथा और पुराणोंका सृजन किया है । जिस प्रकार आजका वैज्ञानिक अपने किसी सिद्धान्तको प्रमाणित करनेके लिए प्रयोगका आश्रय ग्रहण करता है और प्रयोगविधि द्वारा उसकी सत्यता प्रमाणित कर देता है, उसी प्रकार कर्मसिद्धान्तके व्यावहारिक पक्षको प्रयोगरूपमें ज्ञात करनेके लिए आख्यानात्मक साहित्यका सृजन किया जाता है। पुराण, कथा और काव्योंमें कर्मके शुभाशुभ फलकी व्यञ्जना करनेके लिए श्रेसठ शालाकापुरुषों, अन्य पुण्य पुरुषों एवं ब्रताराधक पुरुषोंके जीवनवृत्त अंकित किये गये हैं । जिन व्यक्तियोंने धर्मकी आराधनाद्वारा अपने जीवन में पुण्यका अर्जन कर स्वर्गादि सुखोंको प्राप्त किया है, उनके जीवन-वृत्त साधारणव्यक्तियोंको भी प्रभावित करते हैं। इनका विषय स्मृत्यनुमोदित वर्णाश्रम धर्मका पोषक नहीं है । इसमें जातिवादके प्रति क्रान्ति प्रदर्शित की गयी है । आश्रम-व्यवस्था भी मान्य नहीं है । समाज सागार और अनागार इन दो वर्गों में विभक्त है । तप, त्याग, संयम अहिंसाको साधना द्वारा मानव-मात्र समानरूपसे आत्मोत्थान करनेका अधिकारी है। आत्मोत्थानके लिए किसी परोक्ष शक्तिकी सहायता अपेक्षित नहीं है। अपने पुरुषार्थ द्वारा कोई भी व्यक्ति सर्वांगीण विकास कर सकता है। जैन वाङ्मयमें वेसठ शलाकापुरुष उपाधि या पदविशेष हैं | तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र आदिके 'जीवनमान' निर्धारित हैं। जो भी तीर्थकर या चक्रवर्ती होगा, उसमें निर्धारित जीवनमूल्योंका रहना परमावश्यक है। तीर्थंकरोंके पञ्चकल्याणक और चक्रवर्तियोंकी विशिष्ट सम्पत्ति परम्परा द्वारा पठित है। अत: वेसठ गलाकापुरुषोंके जीवनवृत्त अंकनमें परम्परानुमोदित जीवनमूल्योंका समावेश परमावश्यक है। ___ जैन पुराण और काव्योंमें आत्माका अमरत्व एवं जन्म-जन्मान्तरोंके संस्कारोंकी अपरिहार्यता दिखलाने के लिए पूर्व जन्मके आख्यानोंका संयोजन किया जाता है । प्रसंगवश चार्वाक, तत्त्वोपप्लववाद प्रभूति नास्तिकवादोंका निरसन कर आत्माका अमरत्व और कर्मसंस्कारका वैशिष्ट्य निरूपित किया है। पूर्वजन्म अचायतुल्य याव्यकार एवं लेखक : ३३१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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