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हो रही है। वह शरीरको ही सब कुछ समझ गया । कवि भूधरदासने अपने अन्तस्में उसी सत्यका अनुभव कर जगत्के मानवोंको सजग करते हुए. कहा है
मात-पिता-रज-बीरज सौं, उपजी सब सात कुधात भरी है । माखिनके पर माफिक बाहर, चामके बेठन बेढ़ घरी है ।। नाहि तो आय लगें अबहीं, बक वायस जीव बचे न धरी है ।
देह दशा यह दोखत भ्रात, घिनात नहीं किन बुद्धि हगे है ।। इस प्रकार कविने इस शतकमें अनात्मिक दृष्टिको दूर कर आत्मिक दृष्टि स्थापित करनेका प्रयास किया है।
३. पा साहित्य–महाकवि भूधरदासकी तीसरी रचना पद-संग्रह है । इनके पदोंको-१. स्तुतिपरक, २. जीवके अज्ञानावस्थाके कारण परिणाम और विस्तार सूचक, ३. आराध्यकी शरणके दृढ़ विश्वास सूचक, ४. अध्यात्मोपदेशी, ५, ससार और शरीरसे.विरक्ति उत्पादक, ६, नाम स्मरणके महत्त्व द्योतक और ७. मनुष्यत्वके पूर्ण अभिव्यहजन इन सात वर्ग में विश्वन निगा गा : काला है : इन सभी प्रकारके पदोंमें शाब्दिक कोमलता, भावोंकी मादकता और कल्पनाओंक। इन्द्रजाल समन्वित रूपमें विद्यमान है | इनके पदोंमें राग-विगगका गंगा-यमुनी संगम होनेपर भी शृंगारिकता नहीं है । कई पद सूरदासके पदोंके समान दृष्टिकूट भी हैं। "जगत्-जन जुआ हार चले" पदमें भाषाकी लाक्षणिकता और काव्याक्तियोंकी विदग्धता पूर्णतया समाविष्ट है । "सुनि ठगनी माया । तें सब जग ठग खाया' पद कवी रके "माया महा ठगनो हम जानी" पदसे समकक्षता रखता है। इसी प्रकार "भगवन्त भजन क्यों भूला रे | यह ससार रेनका सुपना,तन धन वारि बबूला रे" पद "भज मन जोवन नाम सबेरा' कबीरके पदके समकक्ष है । "चरखा चलता नाही, वरखा हुआ पुराना" आदि आध्यात्मिक पद कबारके "चरखा चलै सूरत विरहिनका" पदके तुल्य है। इस प्रकार भूधरदासके पद जीवनमें आस्था, विश्वासको भावना जागृत करते हैं ।
कवि धानतराय द्यानतराय आगरानिवासी थे। इनका जन्म अग्रवाल जाति के गोयल गोत्रमें हुआ था। इनके पूर्वज लालपुरसे आकर यहाँ बस गये थे । इनके पितामहका नाम वीरदास और पिताका नाम श्यामदास था । इनका जन्म वि. सं. १७३३में हुआ और विवाह वि० सं० ५७४८में । उस समय आगरामें मानसिंहजोको धर्मशैली थी । कवि द्यानतरायने उनसे लाभ उठाया | २७६ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा