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________________ भी दौड़ता हुआ उसके पास आया। पर शाखासे लटक जानेके कारण वह उस पेड़के तनेको सँड़से पकड़कर हिलाने लगा। वृक्षके हिलनेसे मषुछत्तेसे एकएक बूंद मधु गिरने लगा और वह पुरुष उस मधुका आस्वादन कर अपनेको सुखी समझने लगा। नीचेके अन्धकूपमें चारों किनारेपर चार अजगर मुंह फेलाये बैठे थे तथा जिस शाखाको वह पकड़े हुए था, उसे काले और सफेद रंगके दो चहे काट रहे थे । उस व्यक्तिकी बुरी अवस्था थी। पास हाथी वृक्षाको लापकर उसे भार डालना चाहता था तथा हाथीसे बच जानेपर चहे उसकी डालको काट रहे थे, जिससे वह अन्धकूप में गिरकर अजगरोंका भक्ष्य बनने जा रहा था । उसको इस दयनीय अवस्थाको आकाशमार्गसे जाते हुए विद्याधर-दम्पतिने देखा । स्त्री अपने पतिसे कहने लगी-"स्वामिन् इस पुरुषका जल्द उद्धार कीजिए । यह जल्दी ही अन्धकूपमें गिरकर अजगरोंका शिकार होना चाहता है। प्राप दयालु हैं। अतः अब विलम्ब करना अनुचित है। इसे विमानमें बैठाकर इस दुःखसे छुटकारा दिला देना हमारा परम कर्तव्य है।" ___ स्त्रोके अनुरोधसे वह विद्याधर वहां आया और उससे कहने लगा-"आओ, मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लेता हूं। विश्वास करो, मैं तुम्हें विमान द्वारा सुरक्षित स्थानपर पहचा दंगा।" वह पूरुष बोला-"मित्र आप बड़े उपकारी हैं। कृपया थोड़ी देर रुके रहें। अबकी बार गिरने वाली मधुबूंदको खाकर में आता हूँ।" विद्याधरने बहुत देर तक प्रतीक्षा करनेके बाद पुनः कहा-"भाई, निकलना है, तो निकलो, विलम्ब करनेसे तुम्हारे प्राण नहीं बच सकेंगे। जल्दी करो।" पुरुष-"महाभाग ! इस मधुबॅदमें अपूर्व स्वाद है । मैं निकलता है, अबकी बूंद और चाट लेने दोजिये। बेचारे विद्याधरने कुछ समय तक प्रतीक्षा करनेके उपरान्त पुनः कहा-"क्या भाई ! तुम्हें इससे छुटकारा पाना नहीं है ? जल्दी आओ, अब मुझे देरी हो रही है । वह लोभी पुरुष बार-बार उसी प्रकार बूंद और चाट लेने दो, उत्तर देता रहा । अब निराश होकर विद्याधर चला गया और कुछ समय पश्चात् शाखाके कट जानेपर वह उस अन्धकूपमें गिर पड़ा तथा एक किनारेके अजगरका शिकार हुआ। इस रूपकको स्पष्ट करते हुए कविने लिखा हैयह संसार महा वन जान । तामहिं भयभ्रम कूप समान || गज जिम काल फिरत निशदीस । तिहं पकरन कहुँ विस्वावीस ॥ बटकी जटा लटकि जो रही । सो आयुर्दा जिनवर कही ।। आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २७१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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