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गत होता है कि कविने उक्त दोहा-चौपाईबद्ध रचना आगराको साहित्य भूमिमें ही सम्पन्न की है।
संवत् सोरहिसे तहाँ भये तापरि अधिक पचानबै गये। माघ मास किसन पक्ष जानि सोमवार सुभवार बखानि । ....''भट्टारक जगभूषण देव गनपर सावस वाकि जुएइ । .....""नगर आगिरौ उत्तम थानु साहिजहाँ तपे दूजो भान ।। ....""बाहन करी चौपईबन्धु, हीनबुधि मेरी मति अंधु ।
कवि बुलाकीदास बुलाकीदासका जन्म आगरेमें हुआ था । ये गोयलगोत्री अग्रवाल दिगम्बर जैन श्रावक थे । इनके पूर्वज बयाना (भरतपुर)में रहते थे । इनके पितामह भवणदास बयाना छोड़कर आगरेमें बस गये थे। उनके पुत्र नन्दलालको सुयोग्य देखकर पंडित हेमराजने उनके साथ अपनी कन्याका विवाह कर दिया था, जिसका नाम जैनी था । हेमराजने अपनी इस कन्याको बहुत ही पुशिक्षित किया था । बुलाकीदासका जन्म इसी जैनो उदरसे हुआ था। उन्होंने अपनी माताकी प्रशंसामें लिखा है
हेमराज पंडित बसै, तिसी आगरे ठाइ । गरग गोत गुन आगरी, सब पूजे जिस पाइ ।। उपगीता के देहजा, जेनी नाम विख्याति । सील रूप गुन आगरी, प्रीति-नीतिको पाँति ॥ दोना विद्या जनकने कीनी अति व्युत्पन्न ।
पंडित जापै सीख लें घरनीतल में धन्न ।। कविकी 'पाण्डवपुराण' नामक एक ही रचना उपलब्ध है । यह रचना उसने अपनी माताके आग्रहसे लिखी है।
भैया भगवतीदास भैया भगवतीदास आगरा निवासी कटारियागोत्रीय ओसवाल जैन थे। इनके दादाका नाम दशरथ साह और पिताका नाम लाल जो था । इनकी रचनाओंसे अवगत होता है कि जिस समय ये काव्यरचना कर रहे थे उस समय आगरा दिल्ली-शासनके अन्तर्गत था और औरंगजेब वहाँका शासक
था।
१. हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन प्रथम भाग, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, पृ. १६३
१६९ तथा २४६।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २६३