________________
६. समाधिरास- इसमें साधु-समाधिका चित्रण आया है।
७. जोगाराम-३८ पद्य हैं । भ्रमवश सांसारमें भ्रमण करनेवाले जीवको भ्रम त्याग अतान्द्रिय सुख-प्राप्तिके हेतु प्रयत्नशील रहने के लिए संकेत किया है।
पेरबहु हो तुम पेरवह भाई, जोगी जगमहि सोई । घट-घट-अन्तरि वसई चिदानंदु, अलखु न लखिए कोई ।। भववन भूल रह्यो भ्रमिरावल, सिवपुर-सुघ विसराई ।
परम अतीन्द्रिय शिव-सुख तजिकर, विषयनि रहिउ भुलाई ॥ ८. मनकरहाराम-२५ पद्य हैं। इस रूपक काव्यमें मनकरहाके चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने और जन्म-मरणके असह्य दू:ख उठानेका वर्णन किया है और बताया है कि रत्नत्रय द्वारा ही जीव जन्म-मरणके दुःखोंसे मुक्त हो शिवपुरी प्राप्त करता है । रूपकको पूर्णतया स्पष्ट किया गया है।
९. रोहित -४ पर हैं : १०. चतुर बनजारा---३५ पद्य हैं । यह भी रूपक काव्य है। ११. द्वादशानुप्रक्षा...१२ पद्योंमें द्वादश भावनाओंका निरूपण किया है।
१२. सुगन्धदशमीकथा-५१ पद्योंमें सुगन्धदशमोग्रतके पालन करनेका फल निरूपित किया गया है।
१३. आदित्यवारकथा-रविवारके व्रतानुष्ठानकी रचना की गयो है।
१४. अनथमोकथा--२६ पद्योंमें रात्रिभोजनके दोषोंपर प्रकाश डाला गया है और उसके त्यागकी महत्ता बतलाई है ।
१५. 'चनड़ी' अथवा 'मतिरमणीको चुनड़ी' यह रूपक काव्य है। १६. वीरजिनिन्दगीत-तीर्थंकर महावीरको स्तुति वणित है।
१७. राजमती-नेमिसुर-ढमाल-इसमें राजमति और नेमकुमारके जीवनको अंकित किया गया है।
१८. लघुसोतासतु-इसमें सीताके सतीत्वका चित्रण किया गया है । बारह महीनोंके मन्दोदरी-सोताके प्रश्नोत्तरके रूपमें भावोंकी अभिव्यक्ति हुई है। भाषाढ़ मासके प्रश्नोत्तरको उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जाता है
मंदोदरी तब बोलइ मंदोदरी रानी, सखि अषाढ़ घनघट घहरानी। पोय गए तो फिर घर आवा, पामर नर नित मन्दिर छावा । लवहिं पपोहे दादुर मोरा, हियरा उमग परत नहिं धीरा। बादर उमहि रहे चौपासा, तिय पिय विनु लिहिं उसन उसासा । सीता
२४० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा