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सम्पोषक, रूप-लावप्यसे युक्त और विवेकी बताया है। नागकुमारचरितको रचनेको प्रेरणा कविको इन्हीं टोडरमलसे प्राप्त हुई थी। अत: इस रचनाको पूर्णकर जब साह टोडरमलके हाथमें इसे दिया गया, तो उसने इसे अपने सिरपर चढ़ापा और कवि माणिकराजका खूब सरकार किया ] और उसे वस्त्राभूषण भेंट किये।
उपर्युक्त ग्रन्थरचना-कालोंसे यह स्पष्ट है कि कविका समय वि० को १६ वीं शती है। रचनाएं ___ अमरसेन चरित-इस चरित-ग्रन्थ में मुनि अमरसेनका जोवनवृत्त अंकित है। कथावस्तु ७ सन्धियोंमें विभक्त है। ग्रन्थको पाण्डुलिपि आमेर-शास्त्र. भण्डार जयपुरमें उपलब्ध है।
दूसरी कृति नागकुमारचरित है । इसमें पुण्यपुरुष नागकुमारकी कथा वर्णित है। कथावस्तु ९ सन्धियों में विभक्त है तथा ग्रंथप्रमाण ३३०० श्लोक है ।
माणिक्यराजने अमरसेनचार नामक काव्यमें ग्वालियर नगरका वर्णन किया है। इस वर्णनका अनुसरण महाकवि रइधूके ग्वालियरनगर-वर्णनसे किया गया है। यहाँ उदाहरणार्थ रध विरचित पासणाहचरिउ और अमर. सेनचरिउकी पंक्तियाँ तुलनाहेतु प्रस्तुत की जा रही हैं
महिनीढि पहाण णं गिरिरणउँ, सुरह वि मणि विभउ जणिउँ । कड़सीसहि मंडिज णं इहु पंडिउ, गोपायलु णामें मणिउँ ।
-रइधूकृत पासणाहचरिउ शरा१५-१६ महोबीढि पहाणउँ गुण-बरिढु, सुरहँ वि मणि विमर जणइ सुठु । वरतिण्णिसालमंडिउ पवितु, गंदह पंडिउ सुरपारपत्तु ।।
-अमरसेनरिउ १।३१-१८ कवि माणिकराजकी भाषा-शैली पुष्ट है तथा चरित-काव्योचित सभी गण पाये जाते हैं।
कवि माणिकचन्द डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्रीने भरसपुरके जैनशास्त्र भण्डारसे कवि माणिकचन्दको 'सत्तवसणकहा' को प्रति प्राप्त की हैं। इस कथाग्रन्यके रचयिता १. भविसयत्तकहा तथा अपभ्र धाकधाकाव्य, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, पु० ३२६ ।
आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २३७