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शास्त्र-भाण्डार जयपुरमें सुरक्षित है। कविने ग्रन्थके आदिमें अपना परिचय दिया है।
राज्जर देश मज्झि णयवट्टणु, वसइ विउलु पल्हणपुरु पट्टणु । वीसलाएउ राउ पयपालउ, कुवलय-मंडणु सउलु व मालउ । तहिं पुरवाडवंस नायामल, अगणिय-पुब्वपुरिस-णिम्मल कुल । पुणु हुउ राय सेट्टि जिणभत्तउ, भोवई गामें दयगुण जुत्तउ । सुहउपज तहो पंदणु जायउ, गुरु सज्जणहं भुअणि विक्खायउ। तहो सुउ हुउ धणवाल धरायले, परमप्पय-पय-पंकय-रज अलि ।
एतहि तहिं जिणतित्थण मंतउ, महि भमंतु पल्हणपुरे पत्तउ । अर्थात् धनपाल गुर्जर देशके रहने वाले थे। पल्हणपुर इनका वास-स्थान था। इनके पिताका नाम सुहडदेव और माताका नाम सूहडादेवी था। ये पुरवाड जातिमें उत्पन्न हुए थे। कविके समय राजा वीसलदेव गज्य कर रहा था। योगिनीपुर ( दिल्ली) में उस समय महम्मदशाहवा शासन था । कविने यह ग्रन्य-रचना चन्द्रबाडनगरके राजा सारंगके मंत्री जायसवंशोत्पन्न साह वासद्धर । वासधर की प्रेरणासे की है। कृति समर्पिन भी सन्टीको की गई है। बासाधरके गिताका नाम सोमदेव था, जो संभरी नरेन्द्र कर्णदबके मंत्री थे। कविने साहु वासाधरको सम्यग्दृष्टि , जिनचरणोंका भवत, दयालु, लोकप्रिय, मिथ्यात्वहित और विशुद्धचित्त कहा है। इनको गृहस्थके दैनिक पट्कर्मोम प्रवीण राजनीतिमें चतुर और अष्टमूल गुणोंके पालनमें तत्पर बताया है । इनकी पलीका नाम उभयश्री था, जो पत्तिव्रता और शीलयत पालन करनेवाली थी। यह चतुर्विध संघको दान देती थी। इसके आठ पुत्र हुए-जसपाल, जयपाल, रतपाल, चन्द्रपाल, बिहराज, पुण्यपाल, वाइड और पदव । य आठौं पुत्र अपने पिताके समान ही धर्मात्मा थे।
कविने इस ग्रन्थके आदिमें प्राचीन कवियों, आचार्यों और ग्रन्थावा स्मरण किया है। उसने कविचक्रवर्ती धीरसेन, जैनेन्द्रव्याकरणरचयिता देवनन्दि, श्रीवज्रमूरि और उनके द्वाय त्रित पट्दर्शनप्रमाणग्रन्थ, महारान-सुलोचनाचरित, रविषेण-पद्मचरित, जिनरोन-हरिवंशपुराण, जटिलमनि-वगंगग्ति , दिनकरसेन-कन्दपंचग्ति, पद्मसेन-पार्श्वनाथचरित, अमतागधना, गर्माणअम्बसेन-चन्द्रप्रभचरित, धनदत्तचरित, कविविष्णसेन, मानमिनन्दि अम्प्रेक्षा, णवकारमंत्र, नग्देव, कविअसग-वीरचरित, सिद्धसन, कविगोविन्द, जय. धवल, शालिभद्र, चतुर्मुख, द्रोण, स्वयंभू, पुष्पदन्त और मेदु कविका स्मरण किया है। इससे कविको अध्ययनशीलता, पांडिल्य और कवित्वशक्तिपर
२१२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा