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________________ जसु कारणि धणु संचई, पाव करेवि, गहीरु । निछहु सुगाउ अप.ई, मिति लियि गरः। स ३३।। कवि धन-यौवनसे विरक्त हो, घर छोड़ धर्ममें दीक्षा लेनेका उपदेश देता है। कविका यह विश्वास है कि धर्माचरण ही जीवन में सबसे प्रमुख है। जो धर्मत्याग कर देता है वह व्यक्ति अनन्तकाल तक संसारका परिभ्रमण करता रहता है। कवि स्त्री, पुत्र और परिवारकी आसक्तिको पिशाचतुल्य मानता है। जबतक यह पिशाच पीछे लगा रहेगा, तक तक निरंजनपद प्राप्त नहीं हो सकता। कविने लिखा है जसु लग्गइ सुप्पउ भणई पिय-घर-घरणि-पिसाउ। सो किं कहिङ समायरइ मित्त णिरंजण भाउ ॥६१|| 'सुप्रभाचार्यः कथयति यस्य पुरुषस्य गृह-पुत्र-कलत्र-धनादिप्रीतिमद् वस्तु एव पिशाचो लग्नः तस्य पिशाचग्रस्तस्य पुरुषस्य न किमपि वस्तु सम्यग स्वात्मस्वरूप भासते यद्यदाचरते तत् सर्वमेव निरर्थकत्वेन भासते ।' कविने दामका विशेष महत्त्व प्रतिपादित किया है और धनकी सार्थकता दानमें ही मानी है। जो दाता धन दान नहीं करता और निरन्तर उदर-पोषण में संलग्न रहता है, वह पशुतुल्य है । मानव-जीवनकी सार्थकता दान, स्वाध्याय एवं ध्यान-चिन्तनमें ही है। जो मूढ़ विषयोंके अधीन हो अपना जीवन नष्ट करता है वह उसी प्रकारसे निर्बुद्धि माना जाता है जिस प्रकार कोई व्यक्ति चिन्तामणि रत्नको प्राप्त कर उसे यों ही फेंक दे । इन्द्रिय और मनका निग्रह करने वाला व्यक्ति ही जीवनको सफल बनाता है । जसु मणु जीबई विसयसुह, सो णरु मुवो भणिज्ज। __ जसु पुण सुप्पय मणु मरई, सो णरु जीव भणिज्ज ।।६।। 'हे शिष्य ! यः पुरुषः अथवा या स्त्री ऐन्द्रियेन विषयसुखेन कृत्वा जीवति हर्ष प्राप्नोति स नरः वा सा स्त्री मृतकवत् कथ्यते । तत: सुप्रभाचायः कथयति कि यो भव्यः स्वमानसं निग्रह्मति स भव्यः सर्वदा जीवति-लोके: स्मयते।' इस प्रकार कवि सुप्रभने अध्यात्म और लोकनीति पर पूरा प्रकाश डाला है । इस दोहा-ग्रन्थके अध्ययतसे व्यक्ति अपने जीवन में स्थिरता और बोध प्राप्त कर सकता है। महाकवि रहधू महाकवि रइघूके पिताका नाम हरिसिंह और पितामहका नाम संघपत्ति देवराज था। इनकी माँका नाम विजयश्री और पलीका नाम सावित्री था। इन्हें १९८ : तीर्थंकर महावीर और उनको बाचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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