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नरेश कनकप्रभका आदेश मिला कि वें रलोको खरीदनेके लिए देशान्तर जायें। जाते समय समय सेठ अपनी पत्नसिं कह च्या कि सुयोग्य वर देखकर दोनों कन्याओंका विवाह कर देना । जो भी वर घरमें आते वे तिलकमतिके रूपपर मुग्ध हो जाते और उसीकी याचना करते । पर सेठनी उसकी बुराई कर अपनी पुत्रीको आगे करती और उसीकी प्रशंसा करती। तो भी वरके हठसे विवाह तिलकमतिका ही पक्का करना पड़ा । विवाहके दिन सेठानी तिलकमतिको यह कहकर श्मसानमें बैठा आई कि उनकी कुलप्रथानुसार उसका वर वहीं आकर उससे विवाह करेगा, किन्तु घर आकर उसने यह हल्ला मचा दिया कि तिलकमति कहीं भाग गई। लग्नकी बेला तक उसका पता न चल सकनेके कारण वरका विवाह तेजमतीके साथ करना पड़ा । इस प्रकार कपटजाल द्वारा सेठानीने अपनी इच्छा पूर्ण की। ____ इधर राजाने भवनपर चढ़ कर देखा कि एक सुन्दर कन्या श्मशानमें बैठी हुई है । वह उसके पास गया और सारी बातें जानकर उससे विवाह कर लिया। राजाने अपना नाम पिंडार बतलाया। कन्याने यह सारा समाचार अपनी सौतेली माँको कहा । सौतेली माँने एक पृथक् गृहमें उसके रहनेकी व्यवस्था कर दी। राजा रात्रिको उसके पास आता और सूर्योदयके पूर्व ही चला जाता । पतिने रत्नजटित वस्त्राभूषण भी उसे दिये, जिन्हें देख सेठानी घबरा गई । और उसने निश्चय किया कि उसके पतिने राजाके यहाँसे इसे चुराया है। इसी बीच सेठ भी विदेशसे लौट आया। सेठानीने सब वृत्तान्त सुनाकर राजाको खबर दी । राजाने चिन्ता व्यक्त की और सेठको अपनी पुत्रीसे चोरका पता प्राप्त करनेका आग्रह किया। पूत्रीने कहा कि मैं तो उन्हें केवल चरणके स्पर्शसे पहचान सकती हूँ। अन्य कोई परिचय नहीं । इस पर राजाने एक भोजका आयोजन कराया, जिसमें सुगन्धाको आँखे बांधकर अभ्यागतोंके पैर घुलानेका काम सौंपा गया । इस उपायसे राजा ही पकड़ा गया। राजाने उस कन्यासे विवाह करने का अपना समस्त वृत्तान्त कह सुनाया, जिससे समस्त वातावरण आनन्दसे भर गया। इस प्रकार मुनिके प्रति दुर्भावके कारण जो रस्नी दुःखी, दरिद्री और दुर्गन्धा हुई थी वही सुगन्धदशमीव्रतके पुण्य प्रभावसे पुनः रानीके पदको प्राप्त हुई।
यह कथा वर्णनात्मक शैली में लिखी गई है, पर बीच-बीचमें आये हुए संवाद बहुत ही सरस और रोचक हैं। राजा-रानीसे कहता है
दिट्ठउ वि सुदसणु मुणिवरिंदु। मयलंछणहीण अउच्च-इंदु ।
दो-दोसा-आसा चत्तकाउ। णाणत्तय-जुत्तउ चीयराउ । १८८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा