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प्रकाण्ड पण्डित थे। ये गुर्जर कुलमें उत्पन्न हुए थे। कविका परिचय-सूचक पद्य 'पज्जण्णचरिउ'को १३वी सन्धिके प्रारंभमें पाया जाता है
जातः श्रीजिनधर्मकर्मनिरतः शास्त्रार्थसर्वप्रियो, भाषाभिः प्रवणश्चतुभिरभवच्छीसिंहनामा कविः । पुत्रो रल्हण-पण्डितस्य मतिमान् श्रीगणरागोमिह,
दृष्टिज्ञान-चरित्रभूषिततनुवंशे विशालेऽवनी ।। इस संस्कृत-पद्यसे स्पष्ट है कि कवि सिंह संस्कृत-भाषाका भी अच्छा कवि था। कविको माताका नाम जिनमती बताया गया है । कविने इसोकी प्रेरणा. से 'पज्जपणचरिउकी रचना की है। कविने काव्यके आरंभ में विनय प्रदर्शित करते हुए अपनेको छन्द-लक्षण, समास-सन्धि आदिके ज्ञानसे रहित बताया है, तो भी कवि स्वभावसे अभिमानी प्रतीत होता है। उसे अपनी काव्य-प्रतिभाका गर्भवों सनिलो अप में किये गये एक संत-गद्यसे यह बात स्पष्ट होती है
साहाय्यं समवाप्य नाम सुकवेः प्रद्युम्नकाव्यस्य यः । कर्ताऽभद् भवभेदकचतुरः श्रीसिंहनामा शमी॥ साम्यं तस्य कवित्वगर्वसहित: को नाम जातोऽवनौ ।
श्रीमज्जेनमतप्रणीतसुपथे सार्थः प्रवृत्तेः क्षमः ।। कविने अपने सम्प्रदायके सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया | पर ग्रंथके अन्तःपरीक्षण और गुरुपरम्परापर विचार करनेसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि कवि दिगम्बर सम्प्रदायका था। ग्रंथकी उत्थानिका और कथनशैली भी उक्त सम्प्रदायके काव्यों जैसी ही है । लिखा हैविउलगिरिहि जिह हयभवकंदहो, समवसरणु, सिरिवीरजिणिदहो । गरवरखयरामरसमवाए, गणहरु-पुच्छिल सेणियराए । मयरद्धयहो विणिज्जयमारहो, कहहि चरिउ पज्जुण्णकुमारहो । तं णिसुणेवि भणइ गणेसरु, णिसुणइ सेणिउ मगणरेसरु ।।
कविका वंश गुर्जर था और अपनेको उसने उस गुर्जरकुलरूपी आकाशको प्रकाशित करनेवाला सूर्य लिखा है । कविने अपने पिताका नाम बुध रल्हण या रल्हण बताया है । बुध रल्ह्णको शोलादि गुणोंसे अलंकृत जिनमती नामकी पत्नी थी, जिसके गर्भसे कवि सिंहका जन्म हुआ था। कविके तीन भाई थे, जिनमें प्रथमका नाम शुभंकर, द्वितीयका गुणप्रवर और तृतीयका साधारण था । ये तीनों ही भाई धर्मात्मा और सुन्दर थे। ग्रन्थमें बताया है
आचायतुल्य काध्यकार एवं लेखक : १६७