________________
खण्ड:४ आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक
प्रथम परिच्छेद संस्कृत-भाषाके काव्यकार और लेखक आस्वादयुक्त अर्थतत्त्वको प्रेषित करनेवाली महाकवियोंकी वाणी अलौकिक और स्फूरणशील प्रतिभाके वैशिष्ट्यको व्यक्त करती है । इस वाणीसे ही सहृदय रसास्वादनके साथ अनिर्वचनीय आनन्दको भी प्राप्त करते हैं | कवि और लेखक जीवनकी बिखरी अनुभूतियोंको एकत्र कर उन्हें शब्च और अर्थके माध्यमसे कलापूर्ण रूप देकर हृदयावर्जक बनाते हैं । अतएव इस परिच्छेदमें ऐसे आचार्यपरम्परा अनुयायियोंका निर्देश किया जायेगा, जिन्होंने गृहस्थाबस्थामें रहते हुए भी सरस्वतीकी साधना द्वारा तीर्थकरको वाणीको जन-जन तक पहुँचाया है। इस सन्दर्भ में ऐसे आचार्य भी समाविष्ट हैं, जिनका जीवन अधिक उद्दीप्त है तथा जिनका कविके रूपमें आचार्यत्व अधिक मुखरित है ।
वान्य या साहित्यकी आत्मा भोग-विलास और राग-द्वेषके प्रदर्शनात्मक शृङ्गार और वीर रसों में नहीं है, किन्तु समाज-कल्याणकी प्रेरणा ही काव्य या साहित्यके मूलमें निहित है । दर्शन, आचार, सिद्धान्त प्रभृति विपयोंको उद्.
-१ -