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रचयिता के साथ स्वयंभु छन्दशास्त्र और व्याकरणके भी प्रकाण्ड पण्डित थे । छन्दचूडामणि, विजयपरिशेष ओर कविराज धवल इनके विरुद थे ।
कवि स्वयंभू के पिताका नाम मारुतदेव और माताका नाम पद्मिनी था । मारुतदेव भी कवि थे। स्वयंभुने छन्दमें 'तहा य माउरदेवस्स' कहकर उनका निम्नलिखित दोहा उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया है
लद्धउ मित्त भमंतेण रक्षणा अरवदेण । सो सिज्जते सिज्जइ वि तह भरइ भरतेण ॥ ४-९
स्वयंभुदेव गृहस्थ थे, मुनि नहीं । 'पउमचरित्र' से अवगत होता है कि इनकी कई पत्नियां थीं, जिनमें दोके नाम प्रसिद्ध हैं - एक अइच्चबा (आदित्यम्बा) और दूसरो सामिब्धा । ये दोनों ही पत्नियाँ सुशिक्षिता थीं । प्रथम पत्नीने अयोध्याकाण्ड और दूसरीने विद्याधरकाण्डकी प्रतिलिपि की थी । कविने उक्त दोनों काण्ड अपनी पत्नियोंसे लिखवाये थे ।
स्वयंभुदेवके अनेक पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे पुत्र त्रिभुवनस्वयंभु थे । श्रीप्रेमीजीका अनुमान है कि त्रिभुवनस्वयंभुकी माताका नाम सुअव्वा था, जो स्वयंभुदेवकी तृतीया पत्नी थीं। श्रीप्रेमीजीने अपने कथन की पुष्टिके लिये निम्नलिखित पद्य उद्धृत किया है
सब्वे वि सुआ पंजरसुअञ्च पढ़ि मक्खराई सिक्खति । कइराअस्स सुओ सुअव्व-सुइ-गन्भ संभूओ ॥
अपभ्रंश में 'सुअ' शब्दसे सुत और शुक्र दोनोंका बोध होता है । इस पद्य में कहा है कि सारे ही सुत पिंजरे के सुखोंके समान पढ़े हुए ही अक्षर सीखते हैं, पर कविराजसुत त्रिभुवन श्रुत इव श्रुतिगर्भसम्भूत है'। यहाँ श्लेष द्वारा सुअब्बाके शुचि गर्भसे उत्पन्न त्रिभुवन अर्थ भी प्रकट होता है। अतएव यह अनुमान सहज में ही किया जा सकता है कि त्रिभुवन स्वयंभुकी माताका नाम सुअब्बा था ।
स्वयंभु शरीरसे बहुत दुबले-पतले और ऊँचे बदके थे। उनकी नाक चपटी और दाँत विरल थे । स्वयंभुका व्यक्तित्व प्रभावक था । वे शरीर से क्षीण काय होने पर भी ज्ञान से पुष्टकाय थे। स्वयंभूने अपने वंश, गोत्र आदिका निर्देश नहीं किया, पर पुष्पदन्तने जपने महापुराण में इन्हें आपुलसंघीय बताया है । इस प्रकार ये यापनीय सम्प्रदाय के अनुयायी जान पड़ते हैं ।
१. अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ८-९, ० २९९ ।
२. जैन साहित्य और इतिहास, प्रथम संस्करण, पृ० ३७४ ।
९६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा