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________________ वबोधन है। इसमें वैशेषिक, पाशपत, कुलाचार्य, सांख्य, बौद्ध, जैमिनीय, चार्वाक, वेदान्स आदि दर्शनोंके तत्वोंकी समीक्षा की गयी है। द्वितीय कल्पका नाम आप्तस्वरूप-मीमांसन है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, बुद्ध और सूर्य आदिके आप्तत्वकी मीमांसा की गयी है। तृतीय कल्पका नाम आगमपदार्थपरीक्षण है, इसमें सोमदेवने आगमकी समीक्षा करते हुए जैन मुनियोंके आचारसे सम्बन्धित स्नान नहीं करना, आचमन नहीं करना, नग्न रहना, खड़े होकर भोजन करना जैसे आचारमें उद्भावित दोषोंका निराकरण किया है। चतुर्थ मूढ़तोन्मथन कल्पमें प्रचलित लोक-मूढ़ताओंकी समीक्षा की गयी है। लोकमढ़ताओंमें ग्रहण-स्नान, संक्रान्ति-दान, अग्नि-पूजन, धर्मभावनासे नदी-समद्रमें स्नान, वृक्ष-पूजा, स्तुप-वन्दन, गोमुत्र-सेवन, रल, भूमि, यक्ष, शस्त्र, पर्वत पूजन आदिकी गणना की गयी है। अन्ततः सम्यक् आप्त, आगम और तत्त्वोंके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन निरूपित किया है ! चार कल्पोंके पश्चात् आगेके सोलह कल्पोंमें सम्यग्दर्शनके आठों अगोंमें प्रसिद्ध अञ्जन चोर, अनन्तमती, उद्यायन, रेवतीरानी, जिनेन्द्रभक्त सेठ, वारिपेण, विष्णुकुमार मुनि और वनकुमार मुनिको रोचक कथा, दो गया है। २१वें कल्पमें सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति-निमित्तोंका कथन करते हुए निसर्गज और अधिगमज भेदों एवं सराग और वीतराग भेदों तथा उनके अभिव्यञ्जक प्रशमादिका स्वरूप बतलाया गया है । २२से २५वें कल्प तक मद्य, मांस, मधु आदिके दोष बतलाते हुए मद्यपान और मांस-भक्षणके संकल्पसे उत्पन्न दोष और उनके त्यागसे उत्पन्न होनेवाले कल्याणका कथाओं द्वारा वर्णन किया गया है। २६ से ३रखें कल्प तक पंचाणुव्रतोंका वर्णन है और हिंसा, झूट, चोरी, कुशील और परिग्रहसे उत्पन्न हुई बुराइयोंको बतलाते हुए पांच कथाएँ प्राञ्जल गद्यमें लिखी गयी हैं । तेतीसवें कल्पमें तीन गुणवतोंका वर्णन है। ___चोतीसवें कल्पसे चलीसवें कल्प तक सामायिकशिक्षाप्रतका निरूपण है। सोमदेवने सामायिकका अर्थ जिनपूजासम्बन्धी क्रियाएँ लिया है। अतः ३४वें कल्पमें स्नान-विधि, ३५वें में समाचार-विधि, ३६वेंमें अभिषेक और पूजन विधि, ३७वमें स्तवन-विधि, ३८वेंमें जप-विधि, ३९३में ध्यान-विधि और ४०वें कल्पमें श्रुताराधन-विधि वर्णित है । ४१वें कल्पमें प्रौषधोपवास, ४२वें कल्पमें भोगोपभोगपरिमाणवत और ४३वें कल्पमें दानकी विधिका वर्णन आया है। ४४वें कल्पके प्रारम्भमें श्रावककी ग्यारह प्रतिमाओंको संक्षेपमें बतलाकर यतियोंके लिए जनेतर सम्प्रदायमें प्रचलित नामोंकी निरुक्तियाँ दी गयी हैं, जो एक नयी वस्तु है। ४५वमें संल्लेखना और ४६वें कल्पमें कछ फूटकर बातोंका कथन है। इस तरह सोमदेवका यह उपासकाध्ययननिरूपण विशेष महत्त्वपूर्ण है। प्रबुवाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ८७
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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