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बताया कि चण्डमारि देवीके सामने सभी प्रकारके पशुयुगलके साथ सर्वांग सुन्दर मनुष्ययुगलकी बलि करनेके लिए, वह विद्यापर-लोकको जीतने चला । मारिदत्त विद्याधर-लोककी विजय करने और वहांको कमनीय कामनियोंके कटाक्षावलोकनकी उत्सुकताको रोक न सका । उसने चण्डमारि मन्दिरमें महानवमांक आयोजन अपूर्व साह और घूम-धामसे सम्पन्न करनेकी घोषणा की। सभी तरहके पशु एकत्र किये गये। मनुष्यकुमालकी कमी देखकर राज्यकर्मचारी उसकी तलाशमें निकले । इसी समय राजधानीके निकट सुदास नामके मुनि आकर ठहरे। उनके साथ अन्य दो अल्पवयस्क शिष्य भी थे। ये दोनों भाई-बहन, अस्य अवस्थामें ही राज्य त्याग कर साधु हो गये थे। मध्याह्नमें वे दोनों अपने गुरुकी आमा लेकर मिक्षा के लिए नमरमें गये। यहां उनकी राज्यकर्मचारियोंसे मेंट हुई। कर्मचारी बिना किसी रहस्यका उद्घाटन किये ही, बहाना बनाकर उन दोनोंको परमारि मन्दिरमें ले गये। मारिदत्त इस सर्वाग सुन्दर नर-युबलको प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न हुबा बोर उसने विद्याधर-लोक भीतने की इच्छा छोड़ दी। उसने इस सुन्दर नर-युगलको देखकर उनका परिचय जानना चाहा।
-प्रथम आश्वास ___ मुनि कहने लगा--भरतशेषमें अवन्ति नामका एक जनपद है। इसकी राजधानी उज्जमिनी शिप्रा नदी के किनारे बसी है। यहाँ रामा यशवन्बु राज्य करता था। उसकी चन्द्रक्सी नामकी रानी की। उन दोनोंके यशोधर नामका एक पुत्र हुवा । एक दिन राजाने अपने सिरपर श्वेत केश देखे, उन्हें देखकर उसे वैराग्य हो गया और उसने अपने पुत्रको राज्य देकर संन्यास ले लिया । यसोपरका राज्याभिषेक और अमृतमतीके साथ उसका पाणिग्रहण संस्कार शिाके तटपर एक विशाल मण्डपमें धूम-धामके साथ सम्पन्न हुन्न ।
-द्वितीय आश्वास यशोधरने राज्य प्राप्त कर उसकी सुव्यवस्था की । प्रजाके हितके अनेक कार्य सम्पन्न किये।
-तृतीय आश्वास एक दिन राजा यशोधर रानी अमृतमसीके साथ विलास करके लेटा हो था कि रानी उसे सोया समझ धीरेसे पांमसे उबरी और वासीके वस्त्र पहनकर मकनते निकल पड़ी। पशोपर इस रहस्यको अवमत करनेके लिए चुपकेसे उसके पीछे हो गया। उसने देखा कि रानी गजपालामें पहुंचकर अत्यन्त गन्दे विजय मकरध्वज नामक महाक्तके साथ विलास कर रही है। उसके आश्चर्य, क्रोध और घुमाका ठिकाना न रहा। वह क्रोधाभिभूत होकर उन दोनोंको मारनेके लिए सोचने लगा, पर कुछ क्षण रूक कर उल्टे पांव लौट आया और राजमहलमें आकर पलंग पर पुनः सो गया । महावतके साथ रति ८४ : तीर्थकर महावीर और उनकी नाचार्यपरम्परा