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________________ में सच्ची धार्मिक भावनाका संचार करना है। अर्थ के लिए कृषि, उद्योग और वाणिज्यकी प्रगति, राष्ट्रीय सामनोंका विकास एवं कृषि-विस्तारके लिए सिंचाई और नहर आदिका प्रवन्ध करना आवश्यक बतलाया है । कामसंवर्द्धन के लिए शान्ति और सुव्यवस्था कर प्रत्येक नागरिकको न्यायपूर्वक सुख भोगनेका अवसर देना एवं कला-कौशलकी उन्नति करना बताया है । इस प्रकार राज्य में शान्ति और सुव्यवस्थाके स्थापनके लिए जनताका सर्वाङ्गीण, नैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शारीरिक विकास करना राजाका परम कर्तव्य है । इसी कारण राजाके अनेक गुण बतलाये है । राज्याधिकार } बताया है कि सबसे पहले पुत्रका, अनन्तर भाईका भाईके अभाव में विमाताके पुत्र -- सौतेले भाईका, इसके अभावमें चाचाका, चाचाके अभाव में सगोत्रीका, सगोत्रीके न रहने पर नाती - लड़कीके पुत्रका एवं इसके अभाव में किसी आगन्तुकका अधिकार होता है । इस प्रकार इस 'नौतिवाक्यामृत' में राजनीति और अर्थशास्त्र पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । यशस्तिलकचम्पू आचार्य सोमदेवका दूसरा ग्रन्थ यशस्तिलकचम्पू है। इसकी कथावस्तु महाराज यशोधरका चरित है, जो आठ आश्वासोंमें विभक्त है। प्रथम आश्वासमें कथाकी पृष्ठभूमि है । अन्तके तीन आश्वासों में उपासकाध्ययन अर्थात् श्रावकाचार वर्णित है । यशोधरको वास्तविक कथावस्तु मध्यके चार आश्वासोंमें स्वयं यशोधर द्वारा अभिहित है । कथाको गद्य-शैली बाणकी 'कादम्बरी' के तुल्य है । 'कादम्बरी' में 'वैशम्पायन शुक' कथा कहना आरम्भ करता है और कथावस्तु तीन जन्मोंमें लहरिया गतिसे भ्रमण कर यथास्थान पहुँच जाती है । सम्राट् मारिदत्त द्वारा आयोजित महानवमीके अनुष्ठानमें अपार जनसमुदायके बीच बलि के लिए लाया गया प्रव्रजित राजकुमार यशस्तिलककी कथाका प्रारम्भ करता है । आठ जन्मोंकी कथा शीघ्र ही घूमती हुई अपने मूल सूत्र पर मुड़ जाती है । यशस्तिलककी यह कथा अत्यन्त लोकप्रिय रही है और आठवीं शताब्दीके दार्शनिक एवं हरिभद्रसे लेकर संस्कृत और अपन शके अनेक कवियों द्वारा भी गृहीत होती रही है। यही कारण है कि संस्कृत और अपभ्रंश भाषा में अनेक यशोधर-काव्य लिखे गये हैं । यौधेय नामका एक जनपद था, जिसकी राजधानी राजपुर थी । यहाँ मारिदत्त राजा राज्य करता था। एक दिन उसे वीरभैरव नामक कवँलाचार्यने प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोवकाचार्य : ८३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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