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पुत्र
लिए कोपको ही राजा बताया है, क्योंकि जिसके पास द्रव्य है वही संग्राम में आदि भी विजय प्राप्त कर लेता है। वनहीनको संसार में कुटुम्बी - स्त्री, छोड़ देते हैं, तब राजाओंके लिये धनहीनता किस प्रकार बड़प्पन हो सकती है। कोपसंग्रह प्रमुख धान्यसंग्रहको बतलाया है, क्योंकि सबसे अधिक प्रधानता इसी है । वान्यके होनेसे ही प्रजा और मेनाको जीवन यात्रा चल सकती है। युद्धका भी धान्यकी विशेष आवश्यकता पड़ती है । रस-संग्रह में लवणको प्रधानता दो गयी है ।
आय व्यय
आय व्ययकी व्यवस्था के लिए पाँच प्रकारके अधिकारी नियुक्त करनेका नियमन किया है। इन अधिकारियों व आदायक, विक, क नीविग्राहक और राजाध्यक्ष वतलाये हैं । बदायकका कार्य दण्डादिकके द्वारा प्राप्त द्रव्यको ग्रहण करना, निवन्वकका कार्य विवरण लिखना, प्रतिबन्धकका रुपये देना, नीविग्राहकका भांडारमें रुपये रखना और राज्याध्यक्षका कार्य सभी आयव्ययके विभागों का निरीक्षण करना है । राज्यकी आमदनी व्यापार कर, दण्ड आदिसे तो करनी ही चाहिये, पर विशेष अवसरों पर देवमन्दिर, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्योंका संचित धन, वेश्याओं, विधवा स्त्रियों, जमीन्दारों, धनियों ग्रामकूटों सम्पन्न कुटुम्बियां एवं मंत्री, पुरोहित, सेनापति प्रभृति अमात्योंमे धन लेना चाहिये | व्यापारिक उन्नति
जिम राज्य में कृषि, व्यापार और पशुपालनकी उन्नति नहीं होती, वह राज्य नष्ट हो जाता है । राजाको अपने यहाँ मालको बाहर जानेसे रोकने के लिए तथा अपने यहाँ बाहरके मालको न आने देनेके लिए अधिक कर लगाना चाहिये' 1 अपने यहां व्यापारकी उन्नतिके लिए राजाको व्यापारिक नीति निर्धारित करना, यातायात के साधनों को प्रस्तुत करना एवं वैदेशिक व्यापारके सम्बन्धमें कर लगाना या अन्य प्रकारके नियम निर्धारित करना राजाके लिये
१. " कृषि पशुपालनं वणिज्या च वार्ता वैश्यानाम् ॥”
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"वार्तासमृद्धी सर्वाः समृद्धयो रात्रः ॥ "
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शुल्क वृद्धिर्बलात्पण्यग्रहणं च देशान्तरभाण्डानामप्रवेशे हेतुः । -- नीतिवाक्यामृतम्, वाममुद्देश्य सूत्र १, २, ११
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८० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा