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व्यस्त राशिका, व्यस्त पञ्चराशिक, व्यस्त सप्तराशिक, व्यस्त नवराशिक, गतिनिवृत्ति, पञ्च राशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड एवं क्रयविक्रयका गणित वर्णित है । षष्ठ अधिकार मिथक व्यवहार है। इसमें संक्रमण, विषम-संक्रमण, पञ्चराशिक विधि, वृद्धि विवान, प्रक्षेपक कुट्टीकार, वल्लिकाकुट्टीकार, विषम कुट्टीकार, सकलकुट्टीकार, सुवर्णकुट्टीकार विचित्रकुट्टीकार एवं श्रदीबद्ध संकलित गणितका सोदाहरण निरूपण आया है। अप्तम अधिकार क्षेत्र गणित व्यवहार है । इसमें क्षेत्रफलसम्बन्धी विविध प्रकारके गणितोंका कथन आया है। व्यावहारिक गणित. सूक्ष्मगणित, जन्य व्यवहार एवं पैशाचिक व्यवहार गणितका उदाहरण सहित निरूपण किया गया है। अष्टम अधिकार खात व्यवहार है। इसमें सूक्ष्म गणित, चितिणित और क्रकचिका व्यवहार गणित निबद्ध है। नवम अधिकार छाया व्यवहार संज्ञक है। इसमें छाया सम्बन्धी विभिन्न प्रकारके गणितोंका उदाहरण सहित विवेचन किया गया है।
महावीराचार्यने (अ-+ब) का आनयन किया है जो न्यूटनके द्विपद श्रेढीको दिशा प्रदान करता है।
(अ+ब) = अ + ३अ उ + ३व अ+ इस 'गणितसासंग्रह' में गणितकी अनेक विशेषताएँ विद्यमान हैं। ग्रन्थकारने भाग देनेकी वर्तमान विधिका कथन किया है। इस सुविधाजनक विधि से उभयनिष्ठ गुणन खण्डोंको हटाकर विभाजन किया जाता है। व्याज निकालने की विधिका निरूपण करते हुए लिखा है--
महावीराचर्यने मूलधन, व्याज, मिश्रधन और समय निकालनेके सम्बन्धमें महत्त्वपूर्ण नियम दिये हैं । मूलधन = स, मिश्रधन = म, समय = ट, व्याज = ई
१- (i) स=
१+ ई *ट xई ..
ट+
स
(ii) स-रई - १
टस (iii) आ= अनेक प्रकारके मूलधन
२-
- _म_
सXट Tum
।
भ
-
आ
+ट
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३७