________________
सोमसेनके उपदेशसे शक संवत् १५६१ फाल्गुन शुक्ला पञ्चमीको पार्श्वनाथ और संभवनाथ की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित की गयी थीं ।'
सोमसेन के शिष्य अभय गति भी कवि और विद्वान् थे। उन्होंने रक्तिकथाकी रचना की है। त्रिवर्णाचार और रामपुराणकी प्रशस्ति में भी इन्होंने अपना परिचय पूर्वोक्त प्रकार ही दिया है। दोनों ग्रन्थोंके प्रशस्तिपद्यों में पर्याप्त साम्य है । यथा
श्री मूलसंधे वरपुष्कराख्ये गच्छे सुजातो गुणभद्रसूरिः । पट्टे च तस्यैव सुसोमसेनो भट्टारकोऽभूद्विदुषां शिरोमणिः ॥
रामपुराण ३३।२३३ ।
X
X
X
X
श्री मूलसंधे वरपुष्कराख्ये गच्छे सुजातो गुणभद्रसूरिः । तस्यात्र पट्ट े मुनिसोमसेनो भट्टारकोऽभूद्विदुषां वरेण्यः ।। त्रिवर्णाचार, प्रशस्ति, २१३ १
स्थितिकाल
सोमसेनका समय वि० सं० की १७ वीं शती है । इन्होंने वि० सं० १६५६ में रविषेण कृत पद्मचरितके आधार पर संस्कृत में रामपुराणकी रचना की है । वि० सं० १६६६ में इन्होंने 'शब्दरत्नप्रदीप' नामक संस्कृतकोश लिखा है और वि०सं० १६६७की कार्तिकी पूर्णिमाको त्रिवर्णाचारकी समाप्ति की है । अतएव वि० [सं० की १७ वीं शतीका उत्तरार्द्ध स्पष्ट है 1
सोमसेन अपने समयके प्रभावशाली वक्ता, धर्मोपदेशक और संस्कृति अनुरागी व्यक्ति थे। इनका भ्रमण राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में निरन्तर होता रहता था । उदयपुर में संस्कृतकोश लिखा गया है और वराट देशके जित्वर नगरमें रामपुराण रचा गया है ।
रचनाएं
सोमसेनने निम्नलिखित रचनाएँ निबद्ध की हैं
१. रामपुराण ।
२. शब्द रत्नप्रदीप ( संस्कृतकोश )
३. धर्म रसिक – त्रिवर्णाचार |
'रामपुराण' में रामकथा वर्णित है। इस कथाका आधार रविषेणका पद्म
१. शाके १५६१ वर्षे प्रमाथी नामसंवत्सरे फाल्गुन सुदि द्वितीया मूलसंधे से नगणे पुष्करगच्छं भ० श्री सोमसेन उपदेशात् प्रतिष्ठितम् । भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ४२ ।
४४४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा