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________________ प्रस्तुत मलयकीति अनेक विषयोंके पण्डित थे। इनके दादागुरु त्रिभुवनकीर्ति थे और गुरु धर्मकीति । धर्मकीर्तिके समय वि०सं० १४३१में केसरियाजी तीर्थक्षेत्रपर विमलनाथमन्दिरका निर्माण हुआ। मलयकीर्ति काष्ठासंघ पुन्नाट, लाडबागडगच्छके आचार्य हैं। दिल्लीके साह फैरूने वि०सं० १४९३में श्रुतपञ्चमी-उद्यापनके निमित्त मूलाचारको एक प्रति मलयकीतिको अपित्त की। इस ग्रन्थकी प्रशस्ति ऐतिहासिक दृष्टिसे विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसमें श्रुतधर, सारस्वत और प्रबुद्धाचार्योंके नाम आये हैं। प्रशस्तिमें अङ्गपूर्वादिके पाठी आचार्योंका उल्लेख करनेके पश्चात् धरसेन, भूतबलि, जिनपालित, पुष्पदन्त और समन्तभद्रादिके नाम बागडसंघकी पट्टावलिमें परिगणित किये हैं। इन आचार्योके अतिरिक्त सिद्धसेन, देवसूरि, वज्रसूरि, महासेन, रविषेण, कुमारसेन, प्रभाचन्द्र, अकलंक, बीरसेन, आंग्रेससम, जिनसेन, बायसेन, रामसेन, माधवसेन, धर्मसेन, विजयसेन, सम्भवसेन, दायसेन, केशवसेन, चारित्रसेन, महेन्द्रसेन, अनन्तकीर्ति, विजयसेन, जयसेन और केशवसेनके नाम भी उल्लिखित हैं। प्रशस्तिमें यह भी बताया है कि वि० सं० १४२३ में योगिनीपुर (दिल्ली)के पास बादशाह फिरोजशाह तुगलक द्वारा बसाये गये फेरोजाबाद नगरमं, जो उस समय धन-धान्यसे परिपूर्ण था, अग्रवाल वंश, गर्ग गोत्री साह लाख निवास करता था। उसकी प्रेमवती नामकी पत्नी थी, जो पातिव्रतादि गुणोंसे अलंकृत थी । इनके दो पुत्र थे साहू खेतल और मदन । खेतलको धर्मपत्नीका नाम सरो था। इस पत्नीसे खेतलको फेरू, पल्ह और बीधा नामक तीन पुत्र हुए। इन तीनोंकी काकलेही, माल्हाही और हरिचन्दही नामकी क्रममः धर्मपत्नियाँ थीं। खेतलके द्वितीय पुत्र पल्लूके मण्डन, जाल्हा, घिरीया और हरिश्चन्द्र नामके चार पुष उत्पन्न हुए। इस परिवारके सभी व्यक्ति विधिवतजैनधर्मका पालन करते और आहार, औषध, अभय और ज्ञान दानादि चारों दानोंका उपयोग करते थे । साहू खेतलने गिरिनगरका यात्रोत्सब किया । साहू फेरूकी धर्मपत्नीने अपने स्वामीसे अनुरोध किया कि श्रुतपञ्चमीका उद्यापन कराइये। इसे सुनकर फेरू अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने मूलाचार नामक ग्रन्थ श्रुतपञ्चमीके निमित्त लिखाकर मुनि धर्मकीर्ति के लिए अर्पित किया । इन धर्मकीतिके स्वर्ग चले जानेपर उक्त ग्रन्थ यम-नियममें निरत तपस्वी मलयकोतिको सम्मानपूर्वक अर्पित किया गया । मलयकोतिने उक्त ग्रन्थकी प्रशस्ति लिखी है। यह प्रशस्ति ऐतिहासिक दृष्टिसे बहुत उपयोगी है। प्रशस्तिमें ३६ पद्य हैं और पद्योंके मध्यमें गद्यांशका भी उपयोग किया गया है। १. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक ६३७ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ४२९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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