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________________ इस समय दिल्ली-जयपुर शाखा में भट्टारक चन्द्रकीर्ति पट्टाधीश थे । नेमिचन्द्र लिए पाण्डवपुराण की भी एक प्रति लिखायी गयी थी । वि०सं० १६७२ फाल्गुन शुक्ला पञ्चमीको पाटणीगोत्र के भट्टारक ययःकीति रेवा नहर पट्टाश्री हुए, तथा १८ वर्ष तक पट्टपर आसीन रहें । इस प्रकार जैन साहित्य में कई नेमिचन्द्रों का उल्लेख प्राप्त होता है । गोम्मटसारको जीवत्यदीपिकाने टीकाकार को और इनकी गुरुपरम्परा क्या थी ? यह सब विचारणीय हैं। गोम्मटसार के कलकत्ता संस्क रणमें एक प्रशस्ति प्राप्त होती है, जिससे नेगिचन्द्रके संघ, गच्छ, गण आदिका परिचय प्राप्त होता है । प्रशस्ति में लिखा गया है ויי तत्र श्रीशारदागच्छे वसत्कारगणोज्ज्वयः । कुन्दकुन्दमुनीन्द्रस्य नन्द्याम्नायोऽपि नन्दतु ॥ यो गुणगुणमृदगोतो भट्टारकशिरोमणिः । भक्त्या नमामि तं भूवो गुरु श्रीज्ञानभूपणम् || कर्णाटप्रायदेशशमल्लिभूपालभक्तितः । सिद्धान्तः पाठितां येन मुनिन्द्रं नमामि तम् ॥ योऽभ्य धर्मवृद्धयर्थं मह्यं सूरिपदं ददौ । भट्टारकशिरोरत्नं प्रभेन्दुः स नमस्यते ॥ विविधविद्याविख्यातविशालकीर्तिसूरिणा । सहायोऽस्यां कृती कऽधीता च प्रथमं मुदा ॥ श्रीधर्मचन्द्रस्याभयचन्द्रगणेशिनः सूरे: वणिलालादिभव्यानां कृते कर्णाटवृत्तितः ॥ रचिता चित्रकूटे श्रीपार्श्वनाथालयेमुना । साधु सांगास साभ्यां प्रार्थितेन मुमुक्षुणा || गोम्मटसारवृत्तिहि नद्यादुभयैः प्रवत्तिता । शोधयन्त्वागमात् किंचिद्विरुद्धं चेत् बहुश्रुताः ॥ निर्ग्रन्थाचार्यवर्येण विद्यचक्रवर्तिना । 1: L संशोध्याभयचन्द्रंणालेखि प्रथमपुस्तिका ॥ इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि संस्कृत जीवप्रदीपिकाटीकाके रचयिता मूलसंघ बलात्कारगण शारदागच्छ कुन्दकुन्दान्वय और नन्दि आम्नायके नेमिचन्द्र हैं । १. जैनसिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, १० ३९ । २. भट्टारक सम्प्रदाय, लेखांक २८८ । ३. गोम्मटसार कर्मकाण्ड, पृ० २०९७-९८ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्थ : ४१५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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