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________________ - - - ----- वंशे श्रीमत्कुंदकुंदविदुषो देवेन्द्रकीतिगुरुः पट्टे तस्य मुमुक्षरक्षयगणो विद्यादिनंदीश्वरः ।। तत्पादपावनपयोरुहमत्त,ग: श्रीमल्लिभूषणगरुर्गरिमप्रधानः । संप्रेरितोहममुनाभयमच्यभिख्ये भट्टाकरेण चरिते श्रुतसागगख्यः ।। इन पद्योंसे स्पष्ट है कि चरितम्रन्थोंकी भाषा प्रौढ़, परिमार्जित और कान्योचित है। इसी प्रकार कथाग्रन्थोंकी भाषा भी कायोचित है । यतसागरसरिने ग्रन्थरचना द्वारा तो जैनधर्मका प्रकाश किया ही, पर शास्त्रार्थ द्वारा भी उन्होंने जैनधर्मका पर्याप्त प्रकाश किया है। श्रुतसागर अपने समयके बहुत ही प्रसिद्ध मान्य और प्रभावक विद्वान रहे हैं। इन्होंने अपने समयके राजाओं, सामन्तों और प्रभावक व्यक्तियोंको भी प्रभावित किया था। श्रतसागरका व्यक्तित्व बहुमुखी है। उसमें प्रयुक्त विशेषण ही यह सिद्ध करते हैं कि वे कलिकाल गौतम थे। जिस प्रकार गौतम गणधरने श्रुतका बीजरूपमें प्रचार और प्रसार किया, उसो प्रकार, परमागमप्रवीण, ताकिकशिरोमणि श्रुतसागरने अनेक वादियोंको पराजित कर जैनधर्मका उद्योत किया है । ब्रह्मनेभिदत्त ब्रह्म नेमिदत्त मूलसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगणके विद्वान भट्टारक मल्लिभूषणके शिष्य थे । इनके दोभागुरु भट्टारक देवेन्द्रकीतिके शिष्य विद्यानन्दि थे। इन्हीं विद्यानन्दिके पट्टपर मल्लिभूषण प्रतिष्ठित हुए, जो सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूपी रत्नत्रयसे सुशोभित थे। आराधनाकथाकोशकी प्रशस्तिमें मल्लिभूषणकी प्रशंसा करते हुए लिखा है श्रीमज्जैनपदाब्जसारमधुकृच्छीमलसंघाग्नणीः । सम्यग्दर्शनसाधुबोधविलसच्चारित्रचूड़ामणि: ।। विधानन्दिगुरुप्रपट्टकमलोल्लासप्रदो भास्करः। श्रीभट्टारकमाल्लभूषणगुरुभूयात्सता शर्मणे || ब्रह्मनेमिदत्त संस्कृत, अपदंश, हिन्दी और गुजराती भाषाके विद्वान थे । इन्होंने संस्कृतमें चरित, पुराण, कथा आदि ग्रन्थोंकी रचना की है। इन्होंने मालारोहिणी नामक एक प्रसिद्ध रचना लिखा है, जिसमें मूलसंधके आचार्य श्रतसागरको नमस्कारकर फूलमाला कहने की प्रतिज्ञा की गयी है। मोंगरा, पारिजात, चम्पा, जूही, चमेली, मालती, मुचकुन्द, कदम्ब एवं रक्तकमल आदि सुगन्धित पुष्प समूहोंसे गुम्फित जिनेन्द्रमालको स्वर्गमीक्ष सुखकारिणी बताया है और इसे समस्त दुःख-दारिद्र दूर करनेवाली कहा है। इस मालारोहिणीसे प्रतीत होता है कि ब्रह्मजिनदासको स्वाभाविक कविप्रतिभा ४०२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आमार्य-परम्परा - -- - - - -. . . '
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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