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नहीं है, क्योंकि ग्रन्थकर्ताको, तो प्रायः प्रसिद्ध अथवा अप्रसिद्ध तत्कालीन शासकका उल्लेख कर देना भर ही ध्येय रहता है।
स्पष्ट है कि पण्डित के० भुजबली शास्त्री वादीसिंहका समय ११वीं शतीका उत्तरार्द्ध मानते हैं।
(४) १२वीं शताब्दीकी मान्यता संस्कृत-साहित्यके इतिहास लेखक श्रीराम कृष्णामाचारियरकी है। इन्होंने श्री कृष्पस्वामीने तर्कके आधारपर ही भोजका रा-यकाल १२वीं सदी मानकर अपना अभिमत प्रकट किया है। लिखा है-"King Bhaja flourished in the 11th century A. D. and Vadibluubingia who inust have therefore come after tim way be orgsigned to the 12th century A. D.2 समालोचन
उपयुक्त अभिमतोंपर विचार करनेसे तथा बादीसिंहकी कृतियोंके अवलोकनसे ऐसा प्रतीत होता है कि महाकवि वादीसिंहके समयके सम्बन्धमें विद्वानोंने पर्याप्त ऊहापोह किया है। द्वितीय मतके प्रवर्तक श्रीप्रेमीजी और कुप्पु स्वामीने परिमल कविकी उक्तिकी छाया गचिन्तामणिमें प्राप्त की है। पर यह मान्यता निःसार है । गद्यचिन्तामणिके समस्त सन्दर्भका अवलोकन करनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि वादीभसिंहका उक्त गद्य-खण्ड अपनेमें मौलिक
और पूर्ण है, बह किसीका अनुकरण नहीं है। प्रमीजी एवं कुप्पु स्वामी उक्त सन्दर्भाशको सत्यन्धर महासजके शोकके प्रसंगमें बतलाते हैं, पर वस्तुत: वह सन्दर्भ उस समयका है जबकि जोबन्धरने काष्ठांगारके हाथीको कड़ा मारा था, जिससे काष्ठांगार क्रोधित हुआ । गन्धोत्कटने जीवन्धर स्वामीको बांधकर काष्ठांगारके पास भेज दिया और उसने उनके प्राण-वधका आदेश दिया, तो समस्त नगरमें शोक व्याप्त हो गया और नगरवासी सन्तापसे मग्न हो कहने लगे
"अद्म निराश्रया श्रीः, निराधारा धरा, निरालम्बा सरस्वती, निष्फलं लोकलोचनविधानम्, निस्सार: संसारः, नीरसा रसिकता, निरास्पदा वीरता, इति मिथः प्रवतंयति प्रणयोद्गारिणी वाणी, सखेदायां च खेचरचक्रवर्तिदुहितरि दयितविमोक्षणाय.......|" १. जैन सिद्धांत भास्कर, भाग ७, किरण १, पृ० ७ । . History of classical Sanskrit literature by MKrislicna machari
yar, Mat +57 Madras 1937. ३. डॉ. दरबारीलाल कोठियाने इस तथ्यका उद्घाटन स्याहादसिद्धिकी प्रस्तावना
पृ. २७ में किया है। ४. गद्यचिन्तामणि, पंचम लम्ब, पृ० १३१, श्रीरंगम, १९१६ ई० ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोफ्काचार्म : २५