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________________ F अपने तीन गुरुओं को निषेधिकाएं स्थापित कीं, जिससे यह ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रका इनके पूर्व ही स्वर्गवास हो चुका था । एक लेखप्रशस्तिमें प्रभाचन्द्रके पूर्वांचल दिनमणि षट्तर्कतार्किकचूडामणि, वादिमदकुद्दल, अबुधप्रतिबोधक आदि विशेषण पाये जाते हैं, जिससे इनकी विद्वत्ता, तर्कशक्तिका परिचय मिलता है। प्रभाचन्द्रने अपने जीवनकाल में ग्रन्थसंरक्षगका सबसे बड़ा कार्य किया है । इन्होंने प्रमुख ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियां करायी और ग्रन्थभण्डार में विराजमान की । दि० सं० १५७५ मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्थीको पार्वतीबाईने पुष्पदन्तकृत 'जमहरचरिउ' की प्रतिलिपि करायों और भट्टारक प्रभाचन्द्रको भेंट दी । वि० सं० १५८९ में टोकनगर में विहार हुआ और वहाँ पण्डित नरसेन कृत 'सिद्धचक्रकथा' की प्रतिलिपि करायी और उसे बाई पद्मश्रीको स्वाध्यायके लिये भेंट किया 1 सं० १५८२ में घटबालीपुर में श्रीचन्द्रकृत रत्नकरण्डकी प्रतिलिपि करायी गयी और उसे ग्रन्थागार में विराजमान किया गया । संवत् १५८३ की आसाढ़ शुक्ला तृतीयाके दिन इनके प्रमुख शिष्य मण्डलाचार्य धर्मचन्द्र के उपदेश यशःकीर्ति विरचित 'चन्दप्प चरिज' को प्रतिलिपि को गयी, जो जयपुरके आमेर-शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । वि० सं० १५८४ में महाकवि धनपालकृत 'बाहुबलि चरित' की बघेरवालजाति में उत्पन्न शाह माधो द्वारा प्रतिलिपि करावी भी वीशिचारी रत्नकीर्तिको स्वाध्यायके लिये भेंट में दो गयी । निस्संदेह आचार्य प्रभाचन्द्रने विभिन्न स्थानों में विहार कर अनेक जीर्णग्रन्थोंका उद्धार किया और उनकी प्रतियाँ विभिन्न शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत की गयीं । प्रभाचन्द्र ग्रन्थ- जीर्णोद्धार के साथ नवीन मन्दिरोंकी प्रतिष्ठा कराने में भी भी अपूर्व सहयोग प्रदान किया। वि० सं० १५७१ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीयाको षोडशकारणयन्त्र एवं वि० सं० १५७३ की फाल्गुन कृष्णा तृतीयाको दशलक्षणयन्त्र प्रतिष्ठित किया। सं० १५७८ की फाल्गुन शुक्ला नवमीके दिन तीन चौबीसी की मूर्ति प्रतिष्ठित करायी और इस तरह संवत् १५८३ में भी चौबीसी की प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी । वि० सं० १५२३ में मण्डलाचार्य धर्मचन्द्रने आंचा नगर में होनेवाले बड़े प्रतिष्ठामहोत्सवका नेतृत्व किया और उसमें शान्तिनाथस्वामीकी एक विशाल एवं मनोश मूर्ति प्रतिष्ठित की। इस प्रकार प्रभाचन्द्रने साहित्य, पुरातत्त्व अन्योद्धार एवं जनसाधारणमें धर्मके प्रति अभिरुचि उत्पन्न करनेके कार्य सम्पन्न किये। प्रभुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ३८५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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