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________________ । ----- ष्ठाएँ कराकर जैनसंस्कृति और धर्मका पर्याप्त प्रचार किया । वि० सं० १५४८ में जीवराज पापड़ीवालने जो प्रतिष्ठा करायी थी, उसका आचार्यत्व आपके तत्त्वाधान में ही सम्पन्न हुआ । 'पउमचरिय' को प्रशस्ति एवं दर्शन यन्त्र पर उत्कीर्णित अभिलेखसे यह प्रमाणित होता है कि जिनचन्द्रने १६वीं शताब्दी में जैनधर्म के जागरण के लिये अनेक कार्य किये हैं । ग्रन्थलेखन, प्रतिलिपि संपादन धर्मोपदेश, मूर्तिप्रतिष्ठापन आदि कार्यों द्वारा इन्होंने धर्म और संस्कृतिका उत्थान किया है । संवत् १५१२ की आषाढकृष्णा द्वादशीको नेमिनाथचरितकी एक प्रतिलिपि कराया गयी थी, जिसे इन्हें नयनन्दिमुनिने घोघा बन्दरगाहमें समर्पित की थी । वि० सं० १५१७की मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी में झूजणपुर में 'तिलोयपण्णत्ति' की एक प्रति लिखायी गयो । इसी प्रकार वि० सं० १५२१की ज्येष्ठशुक्ला एकादशीको ग्वालियर में 'पउमचरिय की एक प्रति लिखायी गयी, जो नेत्रिनन्दिमुनिको अर्पण को गयी थी । वि० सं० १५३६७ वैशाख शुक्ला दशमीको जिनचन्द्रको आम्नायमें विद्यानन्दने एक महावीर स्वामीको मूर्ति स्थापित की थी । संवत् १५४३ को मार्गशार्ष कृष्णा त्रयोदशोको जिनचन्द्रने सम्यग्दर्शनयन्त्र स्थापित किया तथा वि० सं० १५४५ को वैशाख शुक्ला दशमोको ऋषभदेवकी एकमूर्ति स्थापित की। निश्चयतः जिनचन्द्र अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान् भट्टारक थे 1 रचनाएँ - आचार्य जिनचन्द्रने मौलिक ग्रन्थलेखनके साथ प्राचीन ग्रन्थों की पाण्डुलिपियां तैयार करायीं । उन्होंने इन लिपियों का उपयोग स्वयं किया तथा अन्य मुनियों और त्यागियोंका पठनार्थं प्रतिलिपियाँ अर्पित की। इनके महत्वके सम्बन्ध में पण्डित मेघावीने वि० सं० १५४१ में लिखित धर्म संग्रहश्रावकाचार में इनकी पर्याप्त प्रशंसा की है। लिखा हैं— तस्मान्नीरनिधेरिवेन्दुरभवच्छ्रीमज्जिनेन्दुगंणी स्याद्वादाम्बरमण्डले कृतगतिदिग्वाससां मण्डनः । यो व्याख्यानमरीचिभिः कुवलये प्रल्हादनं चक्रवा न्सद्वृत्तः सकलः कलविकलः षट्कर्मनिष्णातधीः ॥ १. भट्टारक सम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक २५१ । २. वही, लेखांक २५४ । ३. वही, लेखांक २५५ । ४. धर्मसंग्रहश्रावकाचार प्रकाशक बाबू, सूरजभानु वकील, देवबंद (सहारनपुर) मन् १९१०, अन्तिम प्रशस्ति, पद्म १२ । ३८२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आवय-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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