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वयंशिष्य श्रीसुमतिकीति-स्वदेशविख्यातशुभमूर्तिश्रीरत्नभूषणप्रमुस्वसूरिपाठकसाधुसंसेवितचरणसरोजाना...."भट्टारकश्रीज्ञानभूषणगुरुणाम्" ।
स्पष्ट है कि सुमत्तिकीति सिद्धान्तवेदि एवं निग्रन्थाचार्य थे। इनका समय १६वीं शताब्दीका अन्तिम भाग और १७वीं शताब्दीका मध्यभाग है । रचनाएं
भट्टारक सुमतिकोतिने 'कर्मकाण्ड' और 'प्राकृतपञ्चसंग्रह' जैसे सिद्धान्तअन्योंकी टीका लिखी है। इन टोकाओंसे इनके सिद्धान्तविषयक पाण्डित्यका परिज्ञान होता है। ये आचार, दर्शन, कसिद्धान्त, अध्यात्म एवं काव्यके निष्णात विद्वान थे। संस्कृत रचनाएँ १. कर्मकाण्डटीका
२. पञ्चसंग्रहटीका हिन्दी रचनाएँ
१. धर्मपरीक्षारास ४. जिनवरस्वामीविनती २. बसन्तविद्याविलास ५. शीतलनाथगीत
३. जिह्वादन्तसंवाद ६. फुटकरपद्य १. कर्मकाण्ड-टोका-आचार्य नेमिचन्द्रने प्राकृतमें कर्मकाण्डकी रचना को है। इस अन्थकी संस्कृतटोका भट्टारक ज्ञानभूषणको सहायतासे सुमत्तिकोतिने की है। टीकाके आरम्भमें लिखा है
महावीरं प्रणाम्यादी विश्वतत्त्व-प्रकाशकं । भाष्यं हि कर्मकाण्डस्य वक्ष्ये भव्यहितकरं ।। विद्यादि-सुमल्ल्यादिभूष-लक्ष्मीन्दु-सद्गुरून् ।
वीरेन्दं शानभूषं हि वंदे सुमतिकोतियुक् ।। टोका द्वारा विषयका स्पष्टीकरण तो होता ही है, साथ हो कई स्थानों पर नरे विषयोंका समावेश भी पाया जाता है।
२. प्राकृतपंचसंग्रहदोका-आचार्य अमितगति द्वारा वि० सं० १०७३ म प्राकृत-पंचसंग्रहका संशोधन कर संस्कृत-पचसंग्रह ग्रन्थका गठन किया गया है।
१. भट्टारकसम्प्रदाय, शोलापुर, लेखांक ४८६ ।
प्राचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३७९