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________________ ! आसोट्टारकोऽसौ सुचरितमकरोच्छ्रो वराङ्गस्य राज्ञो भव्यशांसि तन्वत् भूमि चरितमिदं वर्ततामार्फतारम् ॥! स्थितिकाल i आचार्य वर्द्धमानने अपने गुरुका निर्देश नहीं किया है। जैन साहित्य परम्परामे नन्दिसंघके एक वर्द्धमान भट्टारक हैं, जिनका दशभक्त्यादिमहाशास्त्र है और जो देवेन्द्रकीतिके शिष्य हैं। इनका समय ई० सन् १५४ के लगभग है । बलात्कारगणमें दो वद्धमान प्रसिद्ध हैं । प्रथम वद्धमान वह हैं, जो न्यायदीपिका के कर्त्ता धर्मभूषणके गुरु हैं और द्वितीय हुम्मच्च शिलालेख के रचयिता हैं | विजयनगर के शिलालेख से अवगत होता है कि चद्ध मानके शिष्य धर्मभूषण हुए। इनके समयमें शक संवत् १३०७ ( ई० सन् १३८५) को फाल्गुन कृष्णा द्वितीयाको राजा हरिहरके मन्त्री चैत्रदण्डनायकके पुत्र इरुगप्पने विजयनगर में कुन्यनाथका मन्दिर बनवाया था । बरांग० १३/८७ 1 न्यायाचार्य पण्डित दरबारीलाल कोठियाने न्यायदीपिका की प्रस्तावना में लिखा है — "विजयनगरनरेश प्रथम देवराय ही राजाधिराज परमेश्वरकी उपाधि से विभूषित थे । इनका राज्य सम्भवतः १४१८ ई० तक रहा है और द्वितीय देवराय सन् १४१९-१४४६ ई० तक माने जाते है। अतः इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि वर्द्ध मानके शिष्य धर्मभूषण तृतीय ( ग्रन्थकार ) ही देवराय प्रथमके द्वारा सम्मानित थे । प्रथम अथवा द्वितीय धर्मभूषण नहीं, क्योंकि वे वद्धमानके शिष्य नहीं थे । प्रथम कर्मभूषण शुभकीर्तिके और द्वितीय धर्मभूषण अमरकीर्तिके शिष्य थे । अतएव यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि अभिनव धर्मभूषण देवराय प्रथमके समकालीन हैं ।" | इस सन्दर्भ में श्रीकोठियाजीने धर्मभूषणको सायणका समकालीन सिद्ध कर उनके समयकी पूर्व सीमा शक संवत् १२८० ( ई० सन् १३५८) मानी है । इस अध्ययन के प्रकाशमें वर्द्धमान भट्टारकका समय धर्म भूषण के गुरु होनेके कारण ई० सन्की १४वीं शतीका उत्तराद्ध है। १. स्वस्ति शकवर्षे १३०७ प्रवर्तमाने क्रोधनवत्सरे फाल्गुन मासे कृष्णपक्षे द्वितीयायां तिथी शुक्रवासरे --- जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १, किरण ४, ५० ९० । २. न्यायदीपिका, वीर सेवा मन्दिर, सरसावा, वर्तमान दिल्ली, सन् १९४५ ई०, प्रस्ता बना पु० ९९ । ३. न्यायदीपिकाका 'बालिशा:' पद उन्हें मायणके समकालीन होने की ओर संकेत करता है । वही पु० ९९ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३५९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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