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________________ तृतीय प्रकाशमें परोक्षप्रमाणका विस्तारसे वर्णन किया है। परोक्षके मेद और उनमें ज्ञानान्तरसापेक्षताका कथन कर स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमानका निरूपण किया है । साधन और साध्यके लक्षणकथनके अनन्तर स्वार्थानुमान और परार्थानुमानोंका प्रतिपादन किया गया है । बौद्धाभिमत वैरूप्य और नैयायिकाभिमत पाञ्च्यरूप्यका निराकरण कर विजिगीषुकथा और वीतरागकयाका समालोचन किया है । अन्यथानुपपत्तिरूप हेतुके समर्थन के पश्चात् हेत्वाभास, उदाहरणाभास, उपन्याभास और निगमनाभासके लक्षण बतलाये गये हैं । आप नय, अनेकान्त और सप्तभंगीके भेदोंका प्रतिपादन किया है । इस प्रकार इस छोटेसे ग्रन्थ में न्यायशास्त्रसम्बन्धी सिद्धान्तोंका अच्छा समावेश किया गया है । भट्टारक वर्द्धमान प्रथम वर्द्धमान भट्टारकने बरांगचरितकी रचना की है। ये मूलसंघ बलात्कारगण और भारतीगच्छके आचार्य हैं। 'परवादिपंचानन' इनकी उपाधि थी । कहा जाता है कि बलात्कारगणमें सरस्वतीगच्छ और उसके पर्याय भारती, वागेश्वरी, शारदा आदि नामोंका प्रयोग वि० सं० १४वीं शतोसे प्रारम्भ हुआ है । सरस्वती या भारतीगच्छ के सम्बन्धमें यह मान्यता प्रचलित है कि दिगम्बर संघके आचार्य पचनन्दिने श्वेताम्बरोंसे विवाद कर पाषाणको सरस्वती मूत्तिसे मन्त्रशक्तिद्वारा निर्णय कराया था। यह विवाद गिरिनार पर्वतपर हुआ कहा जाता है । इसी कारण कुन्दकुन्दान्वय प्रचलित हुआ । बलात्कारगणका सबसे प्राचीन उल्लेख आचार्य श्रीचन्द्रने किया है । इनके दीक्षागुरु आचार्य श्री नन्दी और विद्यागुरु आचार्य सागरसेन थे । ये महाराज भोजके समय में धारानगरी में निवास करते थे । इस गण में दूसरे आचार्य केशवनन्दि हुए । अनन्तर पक्षोपवासी पद्मप्रभ हुए। इनकी शिष्यपरम्परामें नयनन्दी, श्रीधर, चन्द्रकौति, श्रीधर, वासुपूज्य, नेमिचन्द्र, पद्मप्रभ कुमुदचन्द्र, वेशनन्दि, श्रवणसेन, वनवासि वसन्तकीर्ति प्रभृति आचार्य हुए हैं। इस परम्पराकी २६वीं पीढ़ी में वर्द्धमान भट्टारकका उल्लेख मिलता है । कविने इस काव्यकी प्रशस्तिमें लिखा है स्वस्तिश्रीमूलसंघे भुवि विदितगणे श्रीबलात्कारसंज्ञे श्रीभारत्याख्यगच्छे सकलगुणनिधिर्वर्द्धमानाभिधानः । १. भट्टारक सम्प्रदाय, विद्याधर जोहरापुरकर, सोलापुर १९५८ ई० पृ० ४४-४५ । , ३५८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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