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________________ चूर्णीभूतां शिला दवा शिशुञ्चोपद्रवोप्सित्तम् । उत्तानशय्यामाश्रित्याधयमान कराङ्गलिम् ।। हनुमच्चरित ५।१.२-१४७ पद्योंमें संगीतात्मयत भी पायी जाती है । निम्नलिखित पद्म दर्शनीय हैतरलतरतरंगास्त.गाजबीना, बग्घटपटुताभोगजितावारेणन्द्राः । दतपथमचनोग्रा मनीषा सिर. ..यो । हनुमच्चरित ६१२२ कविने काव्यकी समाप्तिकी सूचना देते हुए लिखा हैजैनेन्द्रशासनसुधारसपानपुष्टो, देवेन्द्रकोत्तियतिनायकनैष्टिकात्मा । तच्छिष्यसंयमधरेण चरित्रमेतत्, सृष्टं समीरणसुतस्य महद्धिकस्य ।। हनुच्चरित १२।९१ हरिवंशपुगणको प्रशस्तिमें कविने भुवनकोतिकी प्रशंसा करते हुए लिखा है जगति भुवनकोतिः भूतले ख्यातकीतिः धुतजलनिधिवेत्ताऽनंगमात्रप्रमेत्ता । विमलगणनिवासश्छिन्नसंसारपाला: ___ स जयति जिनराजः साधुराजीसमाजः ।। ३९॥३८ प्रवन्ध-संघटनमें आचार्यको पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है । कथाके माध्यमसे पौराणिक, धार्मिक और दानिक तथ्यों की सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। चरित, धर्म और दर्शनको परम्पराका पोषण चरित और रास काव्योंके रूपमें किया गया है। ये भट्टारक सकलकीति और भुवनकीत्तिके संघमें प्रविष्ट थे और उन्हें गुरुतुल्य मानते थे। इनकी रचनाएँ ६० से भी अधिक हैं । . सोमकीर्ति पन्द्रहवीं शताब्दीके प्रमुख साहित्यसेवियोंमें भट्टारक सोमकीतिको गणना को गयो है । आत्मसाधनाके साथ स्वाध्याय, साहित्यसजन एवं शिष्योंके पठनपाठनमें ये प्रवृत्त रहते थे । ये काष्ठासंघको नन्दितट-शाखाके भद्रारक थे तथा १०वीं शताब्दीके प्रसिद्ध भारत रामसेनकी परम्पसमें होनेवाले भट्टारक थे | इनके दादागुरुका नाम लक्ष्मीसेन और गरुका नाम भीमसेन था । इन्होंने सं० १५१८में रचित एक ऐतिहासिक पट्टावलीमें अपने आपको काष्ठासंघका ८७वां ३४४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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