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सुदर्शनरास--इस रामकाव्यमें ३३७ पद्यों द्वाग सुदर्शनकी कथा वर्णित है । कविने विकारों और कषायोंका अच्छी चित्रण किया है।
अम्बिकारास--१५८ छन्द्रों द्वारा अम्बिकादेवीका चरित निबद्ध किया गया है। काव्यगणोंका सामान्यतया समावेश हुआ है।
नागमोरास-इस रासमें रात्रिभोजनके त्यागका महत्त्व वर्णित है। इस व्रतका पालन नागश्रीने किया है। अतः कविने २५३ पद्योंमें नागश्रीका चरित लिखा है।
श्रीपालरास—इस रास काव्यमें ४४८ पद्य हैं और इसमें कोटिभट श्रीपालके जीवनका चित्रण हुआ है । कविने भाग्यवादका महत्त्व बतलाया है श्रीपालके अतिरिक्त, मंना सुन्दरी, रयण मंजूषा, धवल सेठ आदि पात्रोके चरितका चित्रगर किया गया है।
जम्बूस्वामीरास--१००५ पद्योंमें अन्तिम केवली जम्बस्वामीके चारतका अंकन रासशैली में किया गया है ।
भद्रवाहरास-सिम श्रतकावली भद्रबाहस्वामीक जीवनका चित्रण इस रासकाव्यमें किया गया है। मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त भद्रवाहुक्के शिष्य थे।
रविव्रतकथा-४६ पद्यों में रविव्रतका माहात्म्य वर्णित है। इस कृतिकी भाषा सरल और सुबोध है ।
कविने पूजासाहित्यमें नामानुसार पूजाओंका अंकन किया है। गोत और स्तवनोंमें भावोंकी गहराई पर्याप्त रूपमें पायी जाती है । ब्रह्मजिनदासको काव्यप्रतिभा अमाधारण है । ग्रन्थबाहुल्यको दुटिसे इनका स्थान जैन साहित्यमें प्रमुख है। संस्कृतको अपेक्षा राजस्थानीमिश्रित हिन्दी-रचनाएं अधिक सरस हैं । अञ्जनाको गोदसे शिशु हनुमानके गिरनेका चित्रण करता हआ कवि कहता है
अझै विधाय तनयं यावत्पश्येत्तदजनी। लोलत्वात्पतितस्तावदर्भकः पर्वतापरि ॥ शतखण्डगतातत्र शिला बालकगतः । हाहाकार बिमाने हि जातं तत्र नभस्तले ।। अजनासुन्दरी तावद्रोदनं विदधे परम् । हा पुत्र हा गुणाधार हा माग्मदशाकृते ।। समाप्तिञ्च मया नीता: सर्वे दुःखकदम्बकाः । त्वया नवीना विहितास्तत्किं करवाण्यहम् ॥
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३४३