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भोभूमिको समृद्धि, कुलकरोंकी उत्पत्ति तथा उनके द्वारा विभिन्न समयों में सम्पादित विभिन्न कृत्योंके निर्देश, कर्मभूमियोंका प्रारम्भ एवं इन फर्मभूमियों में घटित होनेवाली विभिन्न अवस्थाओंका चित्रण किया गया है । ] आचार्यने देशी भाषा में ग्रन्थका रचे जानेका कारण बतलाते हुए लिखा है-
भविण भावें सुणो आज रास कहो मनोहार । आदिपुराण जोई करी, कवित करूं मनोहार ॥ बाल गोपाल जिम पढ़े गुणे, जाणे बहु भेद । जिन सासण गुण निरमला, मिथ्यामत छेद || कठिन नारेल दीजे बालक हाय, ते स्वान न जाणे । छोल्यां केला द्राख दीजे, ते गुण बहु माने ॥ तिम ए आदपुराण सार, देस भाषा बखाणं 1 प्रगुण गुण जिम विस्तरे, जिन सरसण बखाणू हरिवंशपुराण - इस ग्रन्थका दूसरा नाम नेमिनाथरास भी है । कविने संस्कृत में लिखे गये अपने पुराणपर ही राजस्थानी भाषामें इस काव्यग्रंथकी रचना की है। इसका रचनाकाल वि० सं० १५२० है ।
रामसीतारास - राम के जीवनवृत्तको राजस्थानी भाषामें निवद्ध किया गया है । यह रचना वि० सं० १५०८ मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशीको लिखी गयी है ।
यज्ञाधररास - - महाराज यशोधरकी कथा अहिंसाका महत्व वर्णित रहनेके कारण साहित्य स्रष्टाओंके लिए विशेष प्रिय रहे हैं। ब्रह्मजिनदासने भी उक्त यशोधरकथाको आधार मानकर इस कृतिको रचना की है। भाषाशैलीको दृष्टिसे यह रचना ग्राह्य है ।
हनुमतरास-पुण्य पुरुष हनुमानका जीवन जैन आचार्य और जैन लेखकोंको विशेष प्रिय रहा है । यह एक लघु काव्य है, जिसमें चरितनायक हनुमानके जीवनकी मुख्य-मुख्य घटनाओंका वर्णन किया गया है। इस रासमें ७२७ दोहा, चौपाई बन्ध है ।
नागकुमाररास - ज्ञानपंचमीव्रतका माहात्म्य दिखलानेके लिए नागकुमारको कथा प्रसिद्ध है। इस कथा के आधार पर संस्कृत, अपभ्रंश और प्राकृत आदि भाषाओंम भी काव्य लिखे गये हैं । ब्रह्मजिनदासने राजस्थानीमिश्रित हिन्दी में नागकुमारसकी रचना कर पंचमीव्रतका माहात्म्य प्रकट किया है। परमहंसरास — इस आध्यात्मिक रूपककाव्यका नायक परमहंस नामक प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: ३४१