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________________ वैशाख शुक्ला त्रयोदशीको आबू 'पर्वतपर एक मन्दिरको प्रतिष्ठा करायी गयी; जिसमें तीम चौबीसीकी प्रतिमाएँ परिकरसहित स्थापित की गयी थीं । वि० सं० १४९७ (ई० सन् १४४०) में एक आदिनाथस्वामीकी मूर्ति तथा वि० सं० १४९९ (ई. सन् १४४२)में सागवाड़ामें आदिनाथ मन्दिरकी प्रतिष्ठा की थी। इसी स्थानमें आपने भट्टारक धर्मकोतिका पट्टाभिषेक भी किया था। भट्टारक सकलकीतिने अपनी किसी भी रचनामें समयका निर्देश नहीं किया है, तो भी मूतिलख आदि साधनोंके आधारपरसे उनका निधन वि. सं० १४२९ पौष मारामें महसाना (गजरात) में होना सिद्ध होता है। इस प्रकार उनकी आयु ५६ वर्ष की आती है। "भट्टारकसम्प्रदाय ग्रन्थमें विद्याधर जोहरापुरकरने इनका समय वि० सं० १४५०-१५१० तक निर्धारित किया है । पर वस्तुतः इनका स्थित्तिकाल वि० सं० १४४३-१४९९ तक आता है । रचनाएँ आचार्य सकलकीति संस्कृतभाषाके प्रौढ़ पंडित थे। इनके द्वारा लिखित निम्नलिखित रचनाओंकी जानकारी प्राप्त होतो है १. शान्तिनाथचरित २, वर्द्धमानचरित ३. मल्लिनाथचरित ४. यशोधरचरित ५. धन्यकुमारचरित ६. सुकमालचरित ७. सुदर्शनचरित ८. जम्बूस्वामीचरित ९. श्रीपालचरित १. भ० सं० लेखांक ३३३ । २. वहीं, लेखांक ३३४ । ३. वही, लेखांक ३३० । ४ प्रशस्तिसंग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, प्रस्तावना पृ० ११ तथा डॉ० कासलीवाल द्वारा लिखित तीन ऐतिहासिक पदावलियाँ । ५. भट्टारकसम्प्रदाय, सोलापुर पृ १५८, बलात्कारगण, इष्टरशाखा कालपट 1 प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ३२९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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