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वर्ष द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेकी घटनाका उल्लेख आया है। शक संवत् ८३२ (ई० सन् ९.१०) के एक राष्ट्रकूट अभिलेखमें इसी प्रकारकी घटनाका निर्देश किया है-भूपालान् कण्टकाभान्-वेष्टयित्वा ददाह-अर्थात् इस घटनाका भी वही तात्पर्य है कि सम्राट् अमोघवर्षने अपने से विपरीत हाए राजाओंको घेरा या जला दिया । अभिलेख अमोघवर्षसे पीछेका है। अतएव यहाँ परोक्षार्थ के लिटलकारका प्रयोग किया गया है।
बाबुराके दानपत्रमें', जो शक संवत् ७८९ ( ई० सन् ८६७ ) का लिखा हुआ है, इस घटनाका उल्लेख है। अभोघवर्ष शक संवत् ७३६ । ई० सन् ८१४ ) में सिंहासनासीन हुआ था और यह दानपत्र शक संवत् ७८९ । ई० सन् ८६७ ) का है । अतएव पाल्यकीर्तिका समय अमोघवर्षका राज्य-काल है । 'अदहदमोघवर्षोsरातीन्' उदाहरणसे अमोघबत्तिके रचयिता पाय्यकीर्तिकी समकालीनता स्पष्ट है।
मि० राईस साहबने चिदानन्द कविक मुनिबंशाभ्युदयनामक कन्नड़काव्यरा एक प्रमाण दिया है। यह कवि मैसूरत चिक्कदेव राजाके समयमें ( ई० सन् १६७२-१७०४ ) हुआ है । बताया है--
"उस मुलिने अपने बुद्धिरूप मन्दराचलसे श्रुतरूप समुद्रका मन्थन कर यशके साथ व्याकरणरूप उत्तम अमृत निकाला। शाकटायनने उत्कृष्ट शब्दानुशासनको बना लेनेके बाद अमोघवृत्तिनामको टीका, जिसे बड़ी शाकटायन कहते हैं, बनाथी, जिसका परिमाण १८००० है। जगत्प्रसिद्ध शाक्टायन मुनिने व्याकरणके सूत्र और साथ ही पूरी वृत्ति भी बनाकर एक प्रकारका पुण्य सम्पादन किया। एक बार अबिद्धकरण सिद्धान्तचक्रवर्ती पद्मनन्दिने मुनियोंके मध्य पूजित शाकटायनको मन्दरपर्वतके समान 'धीर' विशेषणसे विभूषित किया।" ___ गणरत्नमहोदधिके कर्ता वर्धमानने ई० सन् ११४० में शाकटायनका निर्देश किया है । अतएव शाकटायनका समय उससे पूर्व निश्चित है । रचनाएँ
पाल्यकोति या शाकटायनकी निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ब होती हैं१. अमोघवृत्तिसहित शाकटायनशब्दानुशासन२. स्त्रीमुक्ति । ३. केवलिभुक्ति।
(१) शाकटायनका शब्दानुशासन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें चार अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय चार पादोंमें विभक्त है। प्रथम अध्यायके प्रथम पादमें १. एपि ग्राफिया एपिडका, जिल्द १, पृ० ५४ । २. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १५९ पर उद्धृत । २० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा