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लिखा है। इसी कारण उन्होंने-"अथातोहत्प्रवचनं सूत्र' व्याख्यास्यामः" लिखा है। इस कथनसे स्पष्ट है कि इन्होंने महत्प्रवनसूत्रका व्याख्यान किया है। अर्थात् प्राचीन ग्रन्थमें जिन मुख्य तत्वोंका प्रतिपादन किया गया था, उन्हींका निरूपण है। ___'तत्त्वार्थसूत्र' और 'अर्हत्प्रवचन' इन दोनोंके अध्ययनसे यह अवगत होता है कि बहत्प्रभाचन्द्रके 'तस्वार्थसूत्र'का अवलोकन 'अहेस्प्रवचन'के रचयिता प्रभाचन्द्रने किया है । अहंप्रवचनमें ५ अध्याय हैं और ८४ सूत्र हैं। इसमें प्रतिपाद्य वस्तुभोंकी संख्या बतलायी गयी है। जीवोंके छह निकाय हैं, पांच महाव्रत हैं, पांच अणुव्रत हैं, तीन गुणवत हैं, चार शिक्षाप्नत है, सीन गप्तियाँ हैं और पांच समितियाँ हैं । इस प्रकार विषयका वर्णन न कर संख्या ही निर्देश किया है ।
प्रस्तुत बहत्प्रभाचन्द्रके नामसे जो तत्त्वार्थसूत्र नामक ग्रन्थ उपलब्ध होता है उसमें १० अध्याय हैं और १०७ सूत्र हैं। सूत्रोंको संख्याका क्रम निम्न प्रकार है
१५ + १२+१८+६+६+ १४ + ११+ ८++५=१०७
इसमें गुपिच्छाचार्य द्वारा रचित तत्त्वार्थसूत्रके सूत्रोंका संक्षिप्तीकरण ही पाया जाता है । यथा
प्रमाणे द्वे ॥६॥ नयाः सप्त ॥
अखण्ड केवलम् ॥१४॥ स्पष्ट है कि तस्वार्थसूत्रके सूत्रोंका यह संक्षिप्तीकरण है । तृतीय अध्यायके अन्तमें ६३ शलाकापुरुष, ११ रुद्र, ९ नारद, २४ कामदेव बतलाये गये हैं। यह कथन गृपिच्छाचार्यको अपेक्षा अधिक है। इसी प्रकार सप्तम अध्यायमें श्रावकोंके ८ मूलगुण और मुनियोंके २८ मूलगुण बतलाये गये हैं। __ कतिपय सूत्रोंमें तत्स्वार्थ सूत्रकी अपेक्षा अधिक स्पष्टीकरण पाया जाता है । तत्त्वार्थ सूत्र में दानकी परिभाषा 'अनुग्रहार्य स्वस्यातिसर्गो दान के रूपमें की है, पर बृहत्प्रभाचन्द्रने
स्वपरहिताय स्वस्यातिसर्जनं दानम् ॥११॥ १. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला द्वारा सिद्धान्तसाराविसंग्रहके अन्तर्गत, पृ.
११४-११६ प्रकाशित। २. बहनभाचन्द्रका तस्वार्थ सूत्र ११ ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्भरापोषकाचार्य : ३०१