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________________ हैं, जो भौतिक, शारीरिक, सम्पत्ति तथा सुखभोगके त्यागसे सम्बन्ध रहते हैं, तो दूसरे वे जीवनमूल्य हैं जो ऐहिक सुखभोगके साधनोंको प्राप्त करनेके लिए मन्त्र-तन्त्र एवं आराधनाके उपयोगपर जोर देते हैं । यद्यपि अनेकान्तात्मक दृष्टिसे उक्त दोनों प्रकारके जीवनमूल्योंका समन्वय कर अन्तिम लक्ष्य त्याग या निवृत्तिको ही स्थापित किया है और भारम्भिक प्रवृत्तिको निवृत्तिको ओर ले जानेवाला हो कहा है। परम्परापोषक आचार्योंने इस प्रकारके साहित्यका प्रचुररूपमें प्रणयन किया है । जो भौतिक सुख एवं ऐश्वर्यको वृद्धिके लिए सभी प्रकारके नैतिक साधनोंका उपयोग कर लेनेके औचित्यका समर्थन करता है। इसमें सन्देह नहीं कि विभिन्न जीवनमल्योंके आपेक्षिक महत्व और उनका लाभ करनेवाले साधनोंको आपेक्षिक उपादेयताके सम्बन्धमें लम्बा एवं गहरा चिन्तन किया है। अतः जीवनके बढ़ते हुए अनुभव, सम्पत्तिके बदलते हुए उपयोग, विभिन्न सुखभोग सम्बन्धी सामनोंकी एप्तके देत आगधास्त्र, आयुर्वेद, ज्योतिष, निमित्त आदि विषयोंका समावेश हुआ है । संक्षेपमें परम्परापोषक आचार्योंने अपनी प्रतिभाका पूर्ण प्रदर्शन कर लोकहित साधक वाङ्मयका प्रणयन विशेषरूपमें किया है। भले ही आगम, दर्शन, अध्यात्म आदि विषयों में नूतनताका समावेश न हुआ हो, पर लौकिक साहित्य का प्रभूत प्रणयन कर जनमानसको अपनी ओर आकृष्ट करने का पूर्ण प्रयास किया है। वृहप्रमाचन्द्र ईस्वी सन् १९४४में आचार्य श्री जुगलकिशोर मुख्तारने वोरसेवामन्दिरसे ब्रहप्रभाचन्द्र के तत्त्वार्थसूत्रका प्रकाशन किया है। यह प्रभाषन्द्र कौन हैं, कब हए? इसके संबंधमें निश्चित जानकारी नहीं है । श्री मुख्तार साहबने अपनी प्रस्तावनामें चार प्रभाचन्द्रोंका उल्लेख किया है। प्रथम प्रभाचन्द्र तो वे हैं, जिन्होंने प्रमेयकमलमातण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र जैसे न्यायग्रन्थोंकी रचना को है । इनसे पूर्ववर्ती एक अन्य प्रभाचन्द्र भी हुए हैं, जो परलुरु निवासी विनयनन्दि आचार्यके शिष्य थे और जिन्हें चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा प्रथमने एक दान दिया था। ये आचार्य वि० की ६वीं और ७वीं शताब्दीके विद्वान हैं । अतः उक्त कीर्तिवर्माका अस्तित्व शक संवत् ४८९ है। तीसरे प्रमाचन्द्र वे हैं, जिनका देवनन्दि आचार्यने जैनेन्द्र व्याकरणके 'रात्रेः कृतिप्रभाचन्द्रस्य' द्वारा उल्लेख किया है। इन प्रभाषन्द्रका समय भी वि०की छठी शताब्दीसे पूर्व होना चाहिये । १. साउथ इण्डिया जयनिज्मा, भाग २, पृ० ८८ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २९९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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