SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुमिचंदसम्मदक दिवयगाहा जहि तर्हि रइया | माहवदतिविज्जेणिय मणु सदणिज्ज मज्जेहि ॥ आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार और प्रेमीजी दोनों ही गोम्मटसार में उल्लिखित तथा त्रिलोकसारके संस्कृतटीकाकारको नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका शिष्य मानते हैं, पर डॉ० ज्योतिप्रसादजीने क्षपणासारको प्रशस्तिके आधारपर उसका रचनास्थान दुल्लकपुर / छुल्लकपुर / कोल्हापुर बताया है। उसमें तत्कालीन शासक प्रशस्ति में उल्लिखित भोजराज वही शिलाहारवंशी भोजदेव प्रतीत होते हैं, जिनके राज्यमें सन् १२०५ ई० में आचार्य सोमदेवने शब्दाव चन्द्रिकाकी रचना की थी । इन माघवचन्द्रके प्रगुरु सिद्धान्ताधिप नेमिचन्द्रगणि गोम्मटसार त्रिलोकसारादिके कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती नहीं, किन्तु बृहदद्रव्यसंग्रहके कर्त्ता नेमिचन्द्रले अभिन्न प्रतीत होते हैं । अतः क्षपणासारके कर्त्ता माधवचन्द्र विद्य आचार्य नेमिचन्द्रगणिके शिष्य माधवचन्द्र बिद्यसे भिन्न हैं । त्रिलोकसार-संस्कृत टीका के रचयिता और यत्र-तत्र गाथाअंकि निर्माता माधवचन्द्र विद्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य ही हैं, उनसे भिन्न अन्य कोई माघचचन्द्र नहीं । आचार्य नयनन्दि आचार्य नयनन्दि अपने युग के प्रसिद्ध आचार्य हैं। इनके गुरुका नाम माणि क्यनन्दि विद्यथा । नयनन्दिने अपने ग्रन्थ 'सुदंसणचरिउ' में अपनी गुरुपरम्परा अंकित की है। उन्होंने बताया है कि महावीर जिनेन्द्रके महान् तीर्थ में कुन्दकुन्दान्वयकी क्रमागत परम्परा में नक्षत्र नामके आचार्य हुए। तत्पश्चात् पद्मनन्दि, विष्णुनन्दि और नन्दनन्दि आचार्य हुए। अनन्तर जिनोपदिष्ट धर्मकी शुभरश्मियोंसे विशुद्ध, अनेक ग्रन्थोंके रचयिता, समस्त जगतमें प्रसिद्ध, भवसमुद्रके लिए नौकास्वरूप विश्वनन्दि हुए। तत्पश्चात् क्षमाशील सैद्धान्तिक विशाखनन्दि हुए । इनके शिष्य जिनेन्द्रागमके उपदेशक, तपस्वी, लब्धप्रतिष्ठ, नरेन्द्रों और देवेन्द्रों द्वारा पूज्य रामनन्दि हुए। इनके शिष्य महापण्डित माणिक्यन दि जो अशेष ग्रन्थोंके पारगामी, तपस्वी, अंगोंके ज्ञाता, भव्यरूपी कमलोंके लिए सूर्य तुल्य एवं त्रिलोकको आनन्ददायी थे । उनके प्रथम शिष्य जगत् विख्यात नयनन्दि हुए लिखा है हुए, जिणिदस्स वीरस्स तित्थे महंते । महाकुन्दकुन्दण्णए एतते ॥ सुणक्खाहिहाणो तहा पोमणंदी । पुणो विण्डुणंदी तो गंदिणंदी || २९० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy