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पद्मसिंह मुनि पद्मसिंह मुनिने ज्ञानसार नामक प्राकृतग्रन्थकी रचना वि० सं० १०८६ में अम्बका नामके नगरमें की है। लिखा है
णियमणपडिवोहत्थं परमसरूबस्स भावणणिमिनं । मिरिपउमसिहमणिणा हिम्मत्रियं णाणसारमिणं ।। सिरिविक्कमस्स काल दशसयछासीजुमि बहमाणे !
सादणसियणवमीए अंवयणयरम्म कयमेयं ।। इन गाथाओंसे स्पष्ट है कि पद्मसिंहमुनिने ६३ गाथाएं ७४ श्लोक प्रमाण रची हैं। विज्ञान, प्रमाण, नय, कसिद्धान्त आदि विषयोंका पूर्ण ज्ञाता है। भगवान् वर्द्धमानस्वामीको नमस्कार करनेके पश्चात् बताया है कि पार्मसम्बद्ध जीव वास्तविक ज्ञानको प्राप्ति न होनेसे दुःखभारसे आक्रान्त हो चतुर्गति में भ्रमण बारता है---
जीवा कम्मणबद्धो संशारा धोरे । बुदई दुवखातो अलहतो पाणबोहित्यं ।।
माधवचन्द्र विद्य मावचन्द्र नामः १०-११ विद्वान् दिखलाई पड़ते हैं। एक माधवचन्द्र विनदेव है, जोन बिलोकसारपर संस्कृत-टीका लिखी है। ये प्राचार्य नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीक शिष्य थे । इनका ममय ई० सन् ९७५-१००० होना चाहिए ।
दसरे माधवचन्द्र विद्यदेव वे हैं जिनके शिष्य नागचन्द्रदेवके पुत्र मादेवसेन बोवको तोलपुरुष विक्रम शान्तरकी रानी पालियक्कने अपनी माताको स्मृतिमें निर्मापित पालियबमति के लिए दान दिया था। लईस राईसने इस अभिलम्वका समय लगभग १५० ई० अनुमानित किया है, किन्तु स्वयं तोलपुरुष विक्रमशान्त ग्या शिलालख ई० सन् ८.९७ का प्राप्त है । अतः यह माधवचन्द्र विद्यदेव, जो इस नामके सर्वप्रथम ज्ञात आचार्य हैं, २,००ई० के लगभग हए होंगे । एक माधवचन्द्र नन्दिसंघ बलात्कारमा सरस्वतीगच्छको पट्टावली में महीचन्द्र पूर्व उल्लिवित हैं । पट्टावलोके अनुसार उनका समय ई. सन् २३३-९६६ है ।'' १. ज्ञानमार, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, गन्यांक १३, माथा ६१-६२ । २. वही, गाथा २ । ३. एपि वर्ण० ८, नागर ४५ । ४. एपि० कर्ण०८, नागर ६० । ५. जैनसिद्धान्तभास्कर, भाग १, कारण २, पृष्ठ १११ । २८८. : सोथंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा