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विक्रान्तकौरवमें जो गुरु-शिष्यपरम्परा दी गयी है उसके अनुसार समन्तभद्रकी शिष्य-परम्परामें शिवकोटि और शिवायन हए । शिवायन शिवकोटिका छोटा भाई था और इनकी परम्परामें वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, अन्य शिष्य गोविन्दभट्ट और हस्तिमल हुए। अतएव संक्षेपमें यह माना जा सकता है कि हस्तिमल्ल सेनसंघके आचार्य हैं और ये वीरसेन और जिनसेनकी परम्परामें हुए हैं। स्थितिकाल
'कर्णाटककविचरिते के अनुसार कवि हस्तिमल्लका समय वि० सं० १३४७ (ई. सन् १२९०) है । अय्यपार्य नामक विद्वानने जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदयनामक अन्य वस्तुनन्दिप्रतिष्ठापाठ, इन्द्रनन्दिसंहिता, आशाधरप्रतिष्ठापाठके आधारपर लिखा है। यह जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय वि० संवत् १३७६ ई० मन १३१९) में रचा गया है । अतः इस्तिमल्लके समयकी उत्तरवर्ती सीमा ई० सन् १३१९के पश्चात नहीं हो सकती । हस्लिमल्लकी पूर्ववर्ती समयसीमा गणभद्राचार्यक बाद ही होना चाहिये। इनके प्राप्त नाटकोंकी कथावस्तुका आधार 'महापुराण' और 'पद्मचरित' है । अतएव इनका समय ई० सन्की ९वीं शतीके पूर्व सम्भव नहीं है। श्री एम० कृष्णभाचार्यरने अपनी History of classical anskrit Hae.taketx. में ऋमिन्फरे, माया विचार करते हुए लिखा है
"Hiy fatlıcr was a remote disciple of Gunabhadra, the disciple of Jinasena who lived about Saka 705. Hastimalla probably lived in the 9th Century A.1)."
अतः स्पष्ट है कि हस्तिमल्लके पिता गणभद्रके शिष्य थे। इस कारण हस्तिमल्लका समय गुण भद्रके पश्चात् और ई० सन् १३१९के पूर्व होना चाहिये । अब विचारणोय यह है कि हस्तिमल्लको इस समयसीमाके बीच कहाँ रखा जाय? हस्सिमल्ल पाण्डयनरेश द्वारा सम्मानित थे तथा सुन्दरपाण्डयने, जो कि पाण्डयनरेशका उत्तराधिकारी था, कविका सम्मान किया था। सुन्दरकाण्डयका राज्यकाल वि० सं० १२०७१ ई० सन् १२५०) है । अतएव इनका समय ई० सन की १३वीं शताब्दी होना चाहिये। श्री वासुदेव पटवर्धनने अपनी अंग्रेजी प्रस्तावनामें निष्कर्ष निकालते हुए लिखा है
"In Conclusion the only thing we can say about Hastimalla's १. History of classical Sanskrit literature. Madras 1937, Page
641-42.
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २७९