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आचार्य थे और इङ्गलेश नामक स्थानके मुनियोंमें प्रधान थे। ये व्याकरण, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र आदि विशेष विषयोंके ज्ञाता थे । बालचन्द्रभुनि इनके शिष्य थे। श्रुतमुनिने इनसे मुनि-दीक्षा ली थी और शास्त्राध्यया भी किया था।
प्रभाचन्द्र-समयसार, पञ्चास्तिकाय और प्रवचनसारके ज्ञाता थे, परभावोंसे रहित थे और भजनोंको प्रतिबोधित करनेवाले थे ! ये शनमुनिके विद्यागुरु थे।
चारुकीर्ति - ये नय, निक्षेप और प्रमाणके ज्ञाता, समस्त परवादियोंको जीतनेवाले, बड़े-बड़े राजाओं द्वारा पूजित और समस्त शास्त्रोंके ज्ञाता थे।
'कर्णाटककविचरिते' के कर्त्ताने श्रतमुनिके गुरु बालचन्द्रका समय वि० सं०१३३० के लगभग बताया है। उनका अभिमत है कि बालचन्द्रमुनिने शक संवत् ११९५ में द्रव्यसंग्रहको एक टोका लिखी है और उसमें उन्होंने अपने गुरुका नाम अभयचन्द्र लिखा है । इससे सिद्ध है कि श्रुतमुनिका समय ई. सन् की १३वीं शताब्दी है। श्रवणबेलगोलामें श्रुतमुनिकी निषद्यापर मंगराज कविका एक ७५ पद्योंका विशाल संस्कृत अभिलेख है। यह निषद्या शक संवत् १३५५ (वि० सं० १४९०) में प्रतिष्ठित की गयी है । इसमें प्रधानतः श्रुतकीति, चारुकीति, योगिराट् पण्डिताचार्य और श्रुतमुनिकी महिमावा वर्णन आया है। यह निषद्या श्रुतमुनिके १०० या १२५ वर्ष पश्चात् प्रतिष्ठित की गयो होगी। अतः श्रुतमुनिका समय ई० सन् की १३वीं शताब्दीका अन्तिम भाग है। रचना-परिचय
श्रुतमुनिको तीन रचनाएँ प्राप्त होती है१. परमागमसार २. आस्रवत्रिभनी ३, भावत्रिभनी
१. आस्रवत्रिभङ्गीमें ६२ गाथाएँ हैं। आस्रवके ५७ भेदोंका गुणस्थानोंमें कथन किया गया है तथा सन्दृष्टि भी दी गयी है। इसी प्रकार योग, कषाय आदिका भी गुणस्थानक्रमसे वर्णन आया है।
२. भावत्रिभङ्गीमें ११६ गाथाएं हैं । पर जैनसिद्धान्त भवन आराकी प्रतिमें इसके आगे प्रशस्तिमूलक सात गाथाएँ भी मिलती हैं। इस ग्रन्थमें गणस्थान और मार्गणाक्रमानुसार भावोंका वर्णन आया है। औपशामक, क्षायिक, क्षायोपमिक, औदयिक और परिणामिक इन भावोंका विशेष वर्णन किया गया
२७४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा