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________________ माना गया है। प्रत्येक आत्मा परमात्मा है। विकारोंके दूर करनेसे आत्मा परमात्मा बन जाती है । ललितांगदेव बड़ा उपद्रवी और अधर्मात्मा था, पर निशंकित होकर आत्मघर्मका पालन करनेसे वह महान बन गया । तीसरी कथा नि:कांक्षित अंगकी महत्ता प्रकट करनेवाली अनन्तमतीकी है। अनन्तमतीके ऊपर कितने संकट आये, विपत्तियोंके पहाड़ गिरे, पर वह अपने कर्तव्यपथसे विचलित नहीं हुई। उसने धर्मकी आराधना किसी फलप्राप्तिकी आकांक्षासे नहीं की। प्रत्युत धर्म आत्माका स्वरूप है, अतएव धर्ममें स्थित रहना ही मानवता है, ऐसा निश्चय कर वह अपने धर्ममें सदा दृढ़ रही। अनन्समतीको कथा उसके चरित्रपर पूरा प्रकाश डालती है। चौथी कथामें निर्विचिकित्सा अंगका समुचित पालन करनेसे क्या फल प्राप्त होता है तथा सेवाकार्य प्रत्येक व्यक्तिके जीवनको कितना उन्नत बनाता है, इसका वर्णन किया गया है । जो व्यक्ति घृणा, द्वेष, मात्सर्य आदि दुर्भावों का परित्याग कर सेवामार्गमें लग जाते हैं, वे अपना कल्याण अवश्य कर लेते हैं। राजा उदायन ऐसा ही धर्मात्मा व्यक्ति था। दान देना, सेवा करना, मानवमात्रको सहायता करना, राजा उद्दायनका जीवनवत था । उसकी आत्मा अत्यन्त निर्मल और प्रलोभनोंसे अछूती थी। पांचवीं कथामें बमबदष्टि अंगकी महत्ता बतलायी गयी है। सच्चा विश्वास कितना फलदायक होता है, यह रेवती रानीकी दृढ़तासे स्पष्ट है। यों तो रेवती रानीको कथा अन्य ग्रन्थों में भी आयी है, पर इस ग्रन्थमें श्रावकघमके वर्णनके साथ विशेषरूपसे प्रतिपादित की गरी है । शान और चारित्र सम्यक्त्वके बिना झूठे हैं। बड़े-बड़े शानी भी सम्यक्त्वके अभावमें नरक-निगोदके पात्र बनते हैं। प्रायः देखा जाता है कि मनुष्य बाह्याडम्बरोंको जीवन में सरलतासे स्थान दे देता है। धर्म और आत्माधरणके नामपर आडम्बर एवं गुरुडम जीवनको खोखला बनाकर नष्ट कर देते हैं । इस कथामें आडम्बरों और गरुडमोंको जीवनसे पृथक कर जीवनको सात्विक बनानेपर जोर दिया है । प्रत्येक विचारक व्यक्ति आत्माका शोधन करनेके लिए प्रलोभनोंका त्याग करना चाहता है, पर मोहवश वह वैसा नहीं कर पाता है। मुनि या श्रावक दोनोंको ही प्रलोभनोंका त्याग करना पड़ता है। अहंकार और ममकार बात्माके शत्रु हैं, जो इनके अधीन रहता है, वह निश्चयत: आत्मधर्मसे च्युत है । दीक्षा लेना आसान है, भावुकतामें आकर कोई भी व्यक्ति दीक्षा ले सकता है, पर उसका यथार्थ निर्वाह सब किसीसे नहीं हो सकता है। इस कथामें अभव्यसेनमुनिका जीवन चित्रित हुवा है। २६६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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