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विद्यमान रामटेकको रामगिरि माना गया। श्री पं० के० भुजबली शास्त्रीने भी नागपुरके निकटवर्ती रामटेकको हो रामगिरि बताया है और यहीं पर उग्रादित्याचार्य द्वारा कल्याणकारककी रचना हुई होगी ।
उग्रादित्याचार्यने अपने गुरुका नाम श्रीनन्द बताया है। श्रीनन्दि नामके कई आचार्य हुए हैं। प्रायश्चित्तचूलिका एवं योगसारके कर्त्ता गुरुदासके गुरुका नाम श्रीनन्दि बताया गया है । नन्दिसंघकी पट्टावली में एक श्रीनन्दिका नाम आया है। इसमें इनका समय वि० संवत् ७४९ बताया गया है ओर इन्हें उज्जैन का पट्टाधीश बताया गया है। श्रीचन्द्रके गुरु भी श्रीनन्द बताये गये हैं | आचार्य वसुनन्दिने भी अपने श्रावकाचारमें एक श्रीनन्दिका उल्लेख किया है जो इनके प्रगुरु थे। हमारा अनुमान है कि नन्दिसंघकी पट्टावलीमें उल्लिखित श्रीनन्दि ही उग्रादित्याचार्य के गुरु है ।
स्थिति काल
उग्रादित्यने अपने इस ग्रन्थ में पूज्यपाद, समन्तभद्र, पात्रस्वामी, सिद्धसेन, दशरथगुरु, मेघनाद, और सिंहसेनका उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त श्रुतकीर्ति, कुमारसेन, वीरसेन और जटाचार्यके उल्लेख भी आये है । अतः यह स्पष्ट है कि उग्रादित्याचार्य इन आचार्योंसे उत्तरवर्ती हैं । ग्रन्थकारने लिखा है"इत्यशेषविशेषविशिष्टदुष्ट पिशिताशिवैद्यशास्त्रेषु मांसनिराकरणार्थमुग्रा
दिव्याचार्येनृपतुंगवल्लभेन्द्रमभायामुद्द्द्घोषितं प्रकरणम्”
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि औषधिमें मांसकी निरुपयोगिताको सिद्ध करनेके लिए स्वयं आचार्यंने श्रीनृपतुंगवल्लमेन्द्रकी सभा में इस प्रकरणका प्रतिपादन किया । ग्रंथके अन्त में एक दिये हुए पद्यसे भी यह अवगत होता है कि नृपतुंग अमोघवर्षं प्रथमको राजसभा में मोषत्रिमें मांस सेवनका निराकरण करने के लिए इस ग्रन्थकी रचना सम्पन्न की गयी है ।
ख्यातः श्रीनृपतुंगवल्लभमहाराजाधिराज स्थितः प्रो. रिसभान्तरे बहुविधप्रख्यातविद्वज्जने । मांसाशिप्रक रेंद्रताखिलभिषग्विद्याविदामग्रतो
मांसे निष्फलतां निरूप्य नितरां जेनेंद्र वैद्यस्थितम् ॥
अर्थात् प्रसिद्ध नृपतुंगवल्लभ महाराजाधिराजको सभामें जहाँ अनेक प्रकार के उद्भट विद्वान थे एवं मांसाशनकी प्रधानताको पोषण करनेवाले बहुत से आयुर्वेद विद्वान् थे । उनके समक्ष मांसको निष्फलताको सिद्ध करके इस १. कल्याणकारक हिताहित अध्याय, अन्तिम प्रशस्ति ।
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य: २५१