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________________ पञ्चास्तिकाय गाथा १४६ की तात्पर्यवृत्तिमै जयसेनाचार्यने 'तथा चोक्तं तत्त्वानुशासनध्यानग्रन्थे' इस वाक्य के साथ तत्त्वानुशासनका ८६वां पद्य उद्धृत किया है। जयसेनाचार्यका समय ई० सन् को १२वीं शताब्दो है । परमात्मप्रकाशके द्वितीय अधिकारके ३६ पद्यकी टीकामें ब्रह्मदेवने तथा 'तथा चोक्तं तत्त्वानुशासने ध्यान ग्रन्थे' इस वाक्यके साथ तत्त्वानुशासनका ८४ संख्यक पद्य उद्धृत किया है। इसी प्रकार द्रव्यसंग्रहकी ५७वीं गाथाकी टीकामें ब्रह्मदेवने इस ग्रंथकी ८३ संख्यक गाथा उद्धृत की है। इससे स्पष्ट है कि रामसेनाचार्य ब्रह्मदेव और जयसेनके पूर्ववर्ती हैं। तत्त्वानुशासनके पद्योंकी समता हेमचन्द्राचायंके योगशास्त्रके पद्योंमें भी प्राप्त होती है। तुलनासे ऐसा ज्ञात होता है कि हेमचन्द्रने तत्त्वानुशासनका अनुसरण किया है। देवसेनकी आलापपद्धतिके पर्यायाधिकारमें तत्त्वानुशासनका ११२ संख्यक पद्य अंग बन गया है। ब्रह्मदेवका समय भोजका राज्यकाल है । भोजनेवि० सं० १०७५-११०७ तक शासन किया है। अतएव ब्रह्मदेवका रामय ई० सन् की ११ वीं शताब्दीका उत्तरार्ध या १२वीं शताब्दीका पूर्वार्ध है। इन सब ग्रंथोंके उद्धरणों और प्रमाणोंसे यह स्पष्ट है कि रामसेनका समय ई० सन्की ११वीं शताब्दीका उत्तरार्ध है । इस समयकी सिद्धि उनके गुरुनागसेनके समयसे भी हो जाती है। रचना-परिचय 'तत्त्वानुशासन' नामक ग्रंथ उपलब्ध है। इस ग्रंथमें २५९ पद्य हैं। इस ग्रंथका प्रकाशन माणिकचन्द्र ग्रंथमालाके ग्रंथांक १३में किया गया है। इस प्रकाशनमें इस ग्रंथके रचयिता नागसेन बतलाये हैं, पर आचार्य जुगलकिशोर मुख्तारने इस ग्रन्थका संशोधित संस्करण प्रकाशित किया है, जिसमें इसके रचयिता रामसेनाचार्य सिद्ध किये हैं । यह ग्रन्थ अध्यात्मविषयक है और स्वानुभतिसे अनुप्राणित है। मंगलाचरण, ग्रन्थनिर्माणप्रतिक्रिया, वास्तव सर्वज्ञके अस्तित्व और लक्षण निर्देशके अनन्तर सर्वज्ञके कथनानुसार दुःखके कारण बन्ध और उसके हेतुओंको हेयतत्त्व तथा सुखके कारण मोक्ष और उसके हेतुओंको उपादेयतत्त्व बतलाकर बन्धके स्वरूपका निर्देश किया गया है। बन्धके चार भेद बतलाये हैं-१. प्रकृतिबन्ध, २. स्थितिबन्ध, ३. अनुभागबन्ध और ४. प्रदेशबन्ध । बन्धका कार्य ही संसार-परिभ्रमण है । बन्धके मुख्य सीन हेतु हैं-१. मिथ्यादर्शन, २. मिथ्याज्ञान और ३. मिथ्याचारित्र । इनके लक्षण प्रतिपादित करनेके अनन्तर मिथ्यादर्शनरूप मोहको चक्रवर्ती राजा, मिथ्याज्ञानको मोहका मन्त्री और अहंकार, ममकारको मोहके पुत्र बताया २३८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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