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________________ इसके पश्चात् आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष तत्त्वका स्वरूप विश्लेषण किया गया है। अनन्तर सम्यक्त्वके निःशंक, निःकांक्ष, निर्विचिकित्सा, अमूढ़ दृष्टि, उपगहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना इन आठ अंगोंका नाम निर्दिष्ट किया गया है । सम्यग्दर्शनके होनेपर संवेग, निर्वेग, निन्दा, महाँ, उपशम, भक्ति, वात्सल्य और अनुकम्पा इन आठ गुणोंके उत्पन्न होनेका कथन आया है । आठ अङ्गों में प्रसिद्ध होनेवालोंके नामका कथन करते हुए बताया है कि राजगृह नगरमें अजन नामक चोर निःशंकित अंगमें प्रसिद्ध हुआ। चम्पानगरीमें अनन्तमती नामकी वणिकपुत्री निःकॉक्षित अंगमें प्रसिद्ध हुई । रुद्दवर नगरमें उद्दायन नामक राजा निर्विचिकित्सा अंगमें प्रसिद्ध हआ। मथुरा नगरमें रेवती रानी अमढ़दष्टि अङ्गमें प्रसिद्ध हई। मागध नगर-राजगहमें बारिषेण नामक राजकुमार स्थितिकरण गुण को प्राप्त हआ। हस्तिनापुर नामके नगरमें विष्णुकुमार मुनिने वात्सल्य अंग प्रकट किया। ताम्रलिप्त नगरीमें जिनदत्तसेठ उपगूहन गुणसे युक्त प्रसिद्ध हुआ और मथुरा नगरोमें वनकुमारने प्रभावना अंग प्रकट किया। इस प्रकार सम्यग्दर्शनका स्वरूप बतलाकर दार्शनिक श्रावकका लक्षण कहा गया है। सम्यग्दर्शनसे विशुद्ध पंच उदुम्बरफलसहित सप्त व्यसनका त्यागी दार्शनिकभावक कहलाता है। यह पंच उधुम्बरफलके साथ सन्धानक, वृक्ष, पुष्प आदिका त्याग करता है। इसके पश्चात् घुस मद्य-मांस आदि सातों व्यसनोंके दोषोंका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है तथा किस-किस व्यसनके सेवनसे किस-किस व्यक्तिको कष्ट प्राप्त हुआ, इसका भी वर्णन किया है। व्यसन सेवन करनेवाला व्यक्ति नरकादि गतियोंमें परिभ्रमण करता है। अतएव १३४वीं गाथासे १७६वीं गाथा तक अर्थात् ४२ गाथाओंमें नरकगसिके दुःखोंका वर्णन किया है। नरकगतिमें क्षेत्रकृत, कालकृत एवं पारस्परिक वेरजनित वेदनाओंका निरूपण किया है। पश्चात् छह गाथाओंमें तिर्यञ्चगतिके दुःखोंका, आठ गाथाओंमें मनुष्यगतिके दुःखोंका और १४ गाथाओंमें देवगतिके दुःखोंका वर्णन किया गया है । अन्तमें उपसंहार करते हुए लिखा है एवं बहुप्पयार दुक्खं संसार-सायरे घोरे। जीवो सरण-विहीणो विसणस्स फलेण पाउणइ ।' अर्थात्, अनेक प्रकारके दुःखोंको घोर संसारसागरमें यह जीव शरण- .. रहित होकर अकेला ही व्यसनके फलसे प्राप्त होता है । १. वसुनन्दि श्रावकाचार, भारतीय मानपीठ काशी, एलोक २०४ । २२८ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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