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शब्दप्रश्न, ६. प्रश्नाक्षरप्रश्न, ७. लग्नप्रश्न और ८. होराप्रश्न । अंगलिप्रश्नका कथन करते हुए बताया है कि श्री महावीरस्वामीकी प्रतिमाके सम्मुख उत्तम मालतीके पुष्पों से-"ओ हों अहणमो अरहताणं ह्रीं अबसर-अवतर स्वाहा' इस मन्त्रका १.८ बार जाप कर मन्त्र सिद्ध करे । पुनः दाहिने हाथकी तर्जनीको १०० बार मन्त्रसे मन्त्रित कर आँखोंके ऊपर रखकर रोगीको भूमि देखनेके लिए कहे। यदि वह सूर्यके विम्बको भूमिपर देखे तो छह मास जीवित रहता है। इस प्रकार अमुलिप्रश्न द्वारा मृत्युसमयको ज्ञात करनेकी विधिके उपरान्त अलक्तप्रश्नकी विधि बतलायी है कि चौरस भूमिको एक वर्णकी गायके गोबरसे लोप कर उस स्थानपर “ओं ह्रीं अरह णमो अरहताणं ह्रीं अवतर अबतर स्वाहा इस मन्त्रको १०८ बार जपना चाहिये। फिर कांसेके बर्तन में अलक्तको भरकर १०० बार मन्त्रो मन्त्रित कर उक्त पृथ्वीपर उस बर्तनको रख देना चाहिए । पश्चात् रोगीक हाथोंको दूधसे भोकर दोनों दाथोंपर मन्त्र पढ़ते हुए दिन, मास और वर्षकी कल्पना करनी चाहिये । पुन: १०० बार उक्त मन्त्रको पढ़कर अलक्तसे रोगीके हाथोंको घोना चाहिये। इस क्रियाक अनन्तर हाथोंके सन्धिस्थानमें जितने बिन्दु काले रंगके दिखलायी पड़ें उतने दिन, मास और वर्षकी आयु समझनी चाहिये । लगभग यही विधि गोरोचनप्रश्नकी भी है।
प्रश्नाकारविधिका कथन करते हुए लिखा है कि जिस रोगीके सम्बन्धमें प्रश्न करना हो वह-ओं ह्रीं बद वद वाग्वादिनी सत्यं हीं स्वाहा" इस मन्त्रका जाप कर प्रश्न करे। उत्तर देनेवाला प्रश्नवाक्यके सभी व्यञ्जनोंको दुगुना और मात्राओंको चौगुना कर जोड़ दे । इस योगफलमें स्वरोंकी संख्यासे भाग देनेपर सम शेष आये तो रोगीका जीवन और विषम शेष आनेपर रोगीकी मृत्यु समझना चाहिये । अक्षरप्रश्नके वर्णनमें ध्वज, धूम, खर, गज, वृष, सिंह, श्वान
और वायस इन आठ आयोंके अक्षर क्रमानुसार आयुका निश्चय करना चाहिये । शब्द प्रश्नमें शब्दोच्चारण, दर्शन आदिके शकुनों द्वारा अरिष्टोंका कथन किया गया है । इस प्रकरणमें शब्दश्रवणके दो भेद बतलाये हैं—१. देवकथित शब्द आर २. प्राकृतिकशब्द । देवकथित शब्द मन्त्रारावना द्वारा सुने जाते है । प्राकृतिक पशु-पक्षी मनुष्य आदिके शब्दश्रवण द्वारा फलका कथन किया जाता है। शब्दप्रश्नका वर्णन बहुत विस्तारसे किया है ।
होराप्रश्न इसका एक महत्त्वपूर्ण अंश है। इसमें मन्त्राराधनाके पश्चात् तीन रेखाएँ खींचनेके अनन्तर आठ तिरछी और खड़ी रेखाएं खींचकर आठ आयोंको रखनेको विधि है तथा इन आयोंके वेष द्वारा शुभाशुभ फलका निरूपण किया है। शनिचक्र, नरचक्र इत्यादि चक्रों द्वारा भी मरणसमयका निर्धा
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २०३