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________________ अर्थात् संयमदेवका शिष्य दुर्गदेव विशुद्ध चरित्रवाला, ज्ञानरूपी जलसे प्रक्षालित बुद्धिवाला, वाद-विवादमें देश भरके विद्वानोंको पराजित करनेवाला, सबको समझानेवाला एवं सम्पूर्ण शास्त्रोंका विद्वान् हुआ, जिसने अपनी विशुद्ध बुद्धि द्वारा स्पष्ट और महान अर्थवाले इस रिष्टसमुच्चयशास्त्रको रचना की। ___ श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीने इस पद्यमें आये हुए 'देसजई' का संस्कृत रूपान्तर 'देशयत्ति' मान लिया है और इस मान्यताके आधारपर दूर्गदेवको क्षल्लक बतलाया है, पर यह भूल है। 'देसजई' का संस्कृत रूपान्तर 'देशजयी' है और इसका अर्थ शास्त्रार्थ में देश भरके विद्वानोंका जीतनेवाला है। यदि दुर्गदेव क्षुल्लक होते तो उन्हें चारचरित नहीं कहा जा सकता। यह ग्रन्थ भी उन्होंने मुनियों और भव्य श्रावकोंको सम्बोधित करनेके लिए लिखा है। मुनिको मगि ही सम्बोधित कर सकता है, श्रावक या क्षुल्लक नहीं। अतः स्पष्ट है कि इस ग्रन्थके रचयिता आचार्य दुर्गदेव ज्योतिष, शकुन, मन्त्र आदिके साथ आगम और तर्कशास्त्रके भी ज्ञाता थे। स्थिति-काल दर्गदेवका स्थिति-काल उनकी रचनाओंसे ज्ञात किया जा सकता है। रिष्ट समचच्यमें रचनाकालका निर्देश करते हए लिखा है ___ संवच्छरइगसहसे बोलीणे णवयसीइ संजुत्ते। सावणसुक्केयारसि दिअइम्मि ( य ) मूलरिक्वमि ॥ अर्थात् संवत् १०८९ श्रावण शुक्ला एकादशीको मूल नक्षत्रमें इसकी रचना की है। यहाँ पर संवत् शब्द सामान्य आया है। इसे विक्रम संवत लिया जाय या शक संवत् यह एक विचारणीय प्रश्न है। ज्योतिषके अनुसार गणना करनेपर शक संवत् १०८२ में श्रावण शुक्ला एकादशीको मूल नक्षत्र पड़ता है तथा वि० सं० १०८९. में श्रावण शुक्ला एकादशीको प्रातःकाल सूर्योदयमें ३ घटी अर्थात् एक घंटा १२ मिनट तक ज्येष्ठा नक्षत्र रहता है। पश्चात मूल नक्षत्र आता है। निस्कर्ष यह है कि शक संवत् माननेपर श्रावण शुक्ला एकादशीको मूल नक्षत्र दिन भर रहता है और वि० सं० मानने पर सूर्यादयके एक घंटा बारह मिनट पश्चात् मूल नक्षत्र आता है । अतएव कौन-सा संवत् लेना उचित है। सम्भवत: कुछ समालोचक यह तर्क कर सकते हैं कि शक संवत लेनेसे दिनभर मल नक्षत्र रहता है। अन्यकर्ताने किसी भी समय इस नक्षत्रमें ग्रन्थका निर्माण किया होगा। अतएव शक संवत् लेना ही उचित है । १. जैन-अन्य-प्रशस्ति-संग्रह-प्रथम भाग, पृष्ट-९४ । २. रिष्टसमुच्चय, गापा संख्या-२६० । १९८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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