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________________ और उपयोगोंका वर्णन किया गया है। १४ मार्गणाओं, १४ जीबसमामों और १४ गुणस्थानों में बन्धके ५७ प्रत्ययोंका कथन किया किया गया है। ग्रन्थकारने इस ग्रन्थमें १४ मार्गणाओंमें जीवसमासोंका वर्णम ११ गाथाओंमें, पश्चात् मार्गणाओं में गुणस्थानोंका १२से २० अर्थात ९, गाथाओंमें वर्णन किया है । २१वीं गाथासे ३१वीं गाथा तक १४ मार्गणाओंमें १५ योगोंका कथन किया है | ३वी गाथासे ४२वी गाथापयंन्त १४ गुणस्थानोंमें दादा उपयोगीका वर्णन किया गया है ! ४३वीं और ४४वी गाथाम १४ जोवसमासोंमें १५ योगोंका और ४५वीं गाथामें उपयोगोंका वर्णन आया है। ४६वीं गाथामें चतुर्दश गुणस्थानों में यथासम्भव योगोंका और 6दी गाथाम चतुर्दश गुणस्थानों में द्वादश उपयोगोंका वर्णन आया है। ४८वीं गाथासे चतुर्दश मार्गणाओंमें ५७ प्रत्ययोंका कथन ७०वीं गाथा तक किया गया है। ७१वीं गाथासे ७५वीं गाथापर्यन्त चतुर्दश गुणस्थानोंमें प्रत्ययोंका निस्तापण आया है। ७८वीं गाथामें ग्रन्थकारका नामांकन और ७९वी गाथामें सिद्धान्तसारका महत्त्व बतलाया गया है। इस प्रकार इस लघुकाय ग्रन्थमें पर्याप्त संद्धान्तिक विषयोंकी चर्चा आयी है । श्रीधराचार्य ___ श्रीधराचायं नामके अनेक जैन विद्वान हुए हैं। श्री प्रेमीजी द्वारा लिखित "दिगम्बर जैन ग्रन्यकर्त्ता और उनके ग्रन्थ' नामक पुस्तवसे एक श्रीधराचार्यकी सूचना मिलती है, जो श्रुतावतार-गध और भविष्यदत्तचरित नामक ग्रन्थोंके रचयिता हैं। सुकुमालचरिज के रचयिताके रूपमें श्रीधाराचार्य अपभ्र शके रचनाकार हैं। इस ग्रन्थको रचनाका कारण बतलाते हुए लिखा है कि बलदके जैनमन्दिरमें, जहाँके शासक गोबिन्दचन्द्र थे, पद्मचन्द्र नामक एक मुनि उपदेश दे रहे थे। उपदेशमें उन्होंने सुकुमालस्वामीका उल्लेख किया । श्रोताओंमें पीछे साहूका पुत्र कुमार नामक एक व्यक्ति था, जिसने सुकुमालस्वामीकी कथाके विषयमें अधिक जाननेकी इच्छा व्यक्त की, किन्तु मुनिराजने कुमारको श्रीधराचार्यसे अभ्यर्थना करनेको कहा, जो कि उसकी जिज्ञासा शान्त कर सकते थे। अतः कुमारने श्रीधराचार्यको सुकुभालचरित रचनेके लिए प्रेरित किया। कुमार साहको पुरवाड़ कुलका बताया है। आचार्यने अपनी कृति भी इन्हींको समर्पित की है । ग्रन्थ समाप्तिकी तिथि भी निम्न प्रकार है बारहसइयं गयई कयहरिसइं । अट्ठोत्तरई महीयले वरिसई । कसणपक्खे अग्गहणे जाया! | तिजदिवसे ससिवारि समापए ।। प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १८७
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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