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शिष्यस्तस्येन्द्रनन्दिचिमलगुणगणोद्दामधामाभिरामः
प्रज्ञतीक्ष्णास्त्राविमलितबलाज्ञानवल्ली वितान:' ।
स्थिति-काल
इन्द्रनन्दिने अपने इस ग्रन्थको रचनाका समय उद्धृत किया है। यह पदा जैन भवनकी प्रतिकरमानन्द जी द्वारा प्रकाशित प्रशस्तिसंग्रह में समान है । पत्र निम्नप्रकार है
अष्टशतस्यैकपष्टि (८६१) प्रमाणशकवत्सरेष्वतीतेषु । श्रीमान्यखेटकटके पर्वप्यक्ष [ अ ] तृतीयायाम् || शतदलसहित चतुःशत्तपरिमाणग्रंथरचनाया युक्तं । श्रीकृष्ण राज राज्ये समाप्तमेतन्मतं देव्या: ॥
अर्थात्, इस ग्रन्थकी समाप्ति मान्यलेट में (वर्तमान मलखेड़ में ) शक सं० ८६१ ई० (सन् ९३९) में अक्षयतृतीया के दिन हुई । अतएव स्पष्ट है कि आचार्य इन्द्रनन्दि योगीन्द्र का समय ई० सन् की दशम शताब्दीका पूर्वार्द्ध है। आचार्य नेमिचन्द्र गुरुके रूप में जिन इन्द्रनन्दिका उल्लेख किया है, समयकी दृष्टिसे वे यही इन्द्रनन्दि सम्भावित हो सकते हैं, पर विषयवस्तु और आगमज्ञानकी दृष्टि से ये दोनों इन्द्रनन्दि भिन्न प्रतीत होते हैं ।
रचना - परिचय
ज्वालमालिनीकल्प मन्त्रशास्त्रका उत्कृष्ट ग्रन्थ है । प्रस्तुत ग्रन्थ दश परिच्छेदोंमें विभक्त है । इन परिच्छेदों के नाम निम्न प्रकार हैं
१. मन्त्रीलक्षण - अर्थात् मन्त्रसाधकके लक्षण
२. दिव्यादिव्यग्रह- दिव्यस्त्रीग्रह, दिव्यपुरुषग्रह, अदिव्यस्त्रीग्रह, अदिव्यपुरुषग्रह |
३. सकलीकरण क्रिया - अंशुद्धि, बीजाक्षरज्ञान |
४. मण्डलपरिज्ञान - सामान्य मण्डल, सर्वतोभद्रमण्डल आदि मण्डलोंका विवेचन |
५. भूताकम्पन तेल
६. रक्षास्तम्भन—बश्य प्रकरण 1
१७. वशीकरण प्रकरण ।
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१. ज्वालमालिनीकल्प, आरा जैन सिद्धान्त भवनकी हस्तलिखित अन्तिम प्रशस्ति ।
२. जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, पू० १३९ पर उधृत |
१८० : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा